शोक मोह सब छूट गए
जब श्वासयज्ञ में मन मिट गयें
अनमोल साधना, साथ निरंतर
क्षण क्षण जीवन पावन करती जाए
दुर्लभ योग सहज हो गए
ज्ञान, भक्ति रहस्य खुलते जाए
अनायास शोधन, नित्य गतिमान
रोम रोम पुलकित चैतन्य हो जाए
उर्ध्वगामी सदा,
लक्ष्यध्यास लिए
राह मोक्षकी चलती जाए
पग पग रक्षण पथ प्रदर्शन
विघ्न मिटा प्रकाश फैलाती जाए
योगसरिता उन्मुक्त बहती जाए
धैर्यसंजीवनी
भगवती कुण्डलिनी
कालकर्म बंध मिटाती जाए
ध्येयपथ की चिंता अविरत
निष्ठा पालन कराती जाए
गुरुकृपा कल्याणकारिणी
भ्रम तम छुड़ाती जाए
ये स्तोत्र केवल महायोग के संदर्भ में है। महायोग के नामसे भी अनेक साधनपरम्परा और गुरू हैं। लेकिन जिस योग का अनुसरण मैं करती हूं और जिस महायोग परंपरा का मेरे सद्गुरुदेव परम पूजनीय श्री नारायणकाका महाराज ने आजीवन अभ्यास और प्रचार प्रसार किया उसी सिद्धयोग के बारे में यह स्तोत्र है।
कविता में अपनी कल्पनाओं को और भावनाओं को अभिव्यक्त करने का स्वातंत्र्य हम बहुत हद तक लेते हैं। लेकिन योगशास्त्र के विषय पर स्तोत्र होने के कारण इसमें आई संकपलनाएँ और भावनाओं को लिखने में शास्त्रविरुद्ध कुछ लिखने का स्वातंत्र्य लेना उचित नहीं इसलिये इस स्तोत्र के अर्थ और भावों का चिन्तन भी विस्तार से लिखना मुझे आवश्यक लगता है। भाव चिन्तन आगे के आलेख में आप यहाँ देख सकते हैं।
साधनासम्बन्धी चैतन्यपूजा में पोस्ट्स:
- श्वासयज्ञ: भावचिन्तन
- योगाग्नि
- स्तोत्र: तुम मेरे साथ हो
- साधन में दृढ़ निष्ठा देना : साधना से मन विचलित होने के अज्ञान जनित भय से कुछ वर्ष पूर्व लिखी प्रार्थना।
बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविताजी।
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