कल नया ऐतिहासिक वक्तव्य
सुना कि किसान भूक और बेरोजगारी से नहीं बल्कि फैशन के चलते आत्महत्या करते हैं।
हमारे नेतागण हमेशा शिकायत करते हैं कि उनके बयानों को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया
जाता है, इसलिए एक नेता का दर्द आज यहाँ पर दे रहे हैं।
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आत्महत्या करना बड़ा ही कूल
फैशन बन रहा है आजकल। पहले किसानों ने मजे उड़ा लिए, मर मर कर,
अब छात्रों में भी ये फैशन वायरल हो रहा है।
भूख, बेरोजगारी या अन्याय से दुखी होकर भी कोई आत्महत्या जैसी ग्लैमरस चीज करता है, मजा आता है मरने में तभी तो ये फैशन चल पड़ा। आप लोग समझते नहीं, आत्महत्या करना, अपनी जिंदगी खुद अपने हाथोंसे मिटाना बड़ा फायदे का सौदा होता है। मस्त खा पीकर बड़ा एन्जॉय करते हुए लोग आत्महत्या करते हैं। पर बस ये तो मीडियवाले ही बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं। किसान की पत्नी को मुआवजा भी मिलता है और अब तो मुआवजा देने में भी कम्पीटीशन होने लगा है, फिर तो लोग गरीबी हो ना हो, नुकसान हो ना हो आत्महत्या तो करेंगे ही। हैं ना फैशनेबल? कहते हैं ना आम के आम और गुठलियों के भी दाम बिलकुल वैसेही खेत तो गए, फसल तो बर्बाद हुई उपरसे जान भी गई और जीकर क्या मिलता मौत से तो इतने पैसे मिले।
दुःख और पीड़ा से भी कोई
आत्महत्या करता है भला। दुखी तो हम जैसे नेता लोग हैं, जिन्हें
रोज रोज भाषण देने पड़ते हैं, प्रेस में बयान देने पड़ते हैं।
प्रेसवाले तोड़मरोड़कर बयान प्रस्तुत करें तो लोगों का गुस्सा हमें सहना पड़ता है।
वैसे हम नेता हुए इसका मतलब ये तो नहीं कि राजनैतिक वक्तव्य राजनैतिक इरादे से ही
दे। दिल में कुछ ख्याल आया बोल दिया। क्या हम नेताओं को बोलने की आझादी नहीं है?
ये तो अन्याय है कि आप उम्मीद करें, हम हर
वक्त राजनीति में जाकर ही बोलें।
और हमें क्या मिलता हैआपकी
सेवा करके? आत्महत्या के फैशन से तो किसानों की ही चर्चा होती है।
जीते जी ना सही पर मौत से भी इतना सुख, इतना ग्लैमर मिलेगा तो आप
ही बताएं कौन नहीं चाहेगा आत्महत्या करना।
भूख तो होती है ग्लैमर की।
नहीं तो हमारी जिंदगी, सर्दी हो या गर्मी रोज रोज उद्घाटन करना, रोज
रोज लंबे लंबे भाषण देना, दिनभर सेल्फ़ी और फ़ोटो खिचवाना! हर
कार्यक्रम के लिए अलग पोषाक लगते हैं। क्या मजा है इसमें? नेताओं के
कष्टों की किसे परवाह है। बारिश नहीं हुई या ओले पड़े तो इसमें हमारा क्या कसूर,
पर नेताओं को ही सब आलोचना सहनी पड़ती है हम देश की सेवा का व्रत जो लेते
हैं।
अगर किसी को दुख पहुंचे तो
हम माफ़ी मांग लेते हैं। पर आपतोड़मरोड़ कर पढ़ते हैं इसमें हमारे जैसे नेता क्या कर
सकते हैं।
हमारी किस्मत में कहाँ फैशन
और ट्रेंड किसानों की तरह।
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