मकरसंक्रांति की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं। आज की कविता मेरी दादी को समर्पित है "चुराने हैं कुछ पल बीते कल से"
कल मकरसंक्रांति है। आज भी बहुत जगह ये पर्व मनाया जा रहा है। महाराष्ट्र में मकरसंक्रांति के पर्व पर बड़ों को प्रणाम परम्परा करने की है और
आशीर्वाद के साथ तिल और गुड के लड्डू या तिल और गुड का कोई की मिठाई वे देते हैं। मुझे इस पर्व पर मेरी दादी की बहुत याद आती है, इस वर्ष तो बहुत ज्यादा। संक्रांति के एक दिन पहले भोगी का त्यौहार, फिर मकरसंक्रांति पर मेरा भी जन्मदिन होने
के कारण त्यौहार के साथ साथ दुगुना उत्साह और खुशियाँ हमेशा हुआ करती थी। अब सूर्य
का मकर राशी में संक्रमण पंद्रह जनवरी को होता है। इसलिए थोडा बदलाव आया है।
जन्मदिन पर मंदिर
में प्रार्थना, घर में पूजा ऐसी कुछ
परंपरा मैंने सीखी है। भगवान का दिया सबसे खुबसूरत तोहफा यह जिंदगी ही तो है। जन्मदिन इस तोहफे के लिए कृतज्ञ होने का भी दिन होना चाहिए। मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे सबका बहुत प्यार भी मिला है। इसलिए इस दिन कुछ विशेष प्रार्थना लिखने की इच्छा होती ही है। इस वर्ष दादी की याद बहुत आ रही थी, तो दादी से ही बात करने की कविता हृदय ने कही।
दादी को हम मराठी में आजी कहते हैं। मुझमें और आजीमें दो पीढ़ियों का अंतर होने के बावजूद भी कभी टकराव नहीं हुआ क्योंकि आजी की सोच बहुत आझाद थी, वो सामजिक बदलावों के साथ चल सकती थी और वैसे भी दादा दादी का प्यार बहुत गहरा होता है। कुछ बातों पर हमारे अलग मत भी होते थे तब भी आजी कभी कठोर नहीं हुई, कभी कठोर बात नहीं कहती थी, कभी किसी बात की सजा नहीं देती थी...आज भी बच्चों को बात बात पर मारने पीटने में, छोटीसी बात पर भी कठोर सजा देने में कुछ गलत नहीं समझा जाता।
मैंने सोचा, आजीको मैं ये कविता दिखाती तो वो क्या कहती..वो कहती...'मेरे बारे में क्यों लिखा..भगवान के लिए लिखना चाहिए।' आजी के समय में ब्लॉगिंग और फेसबुक होता तो आजी जरूर लिखती। आजी को प्रणाम किए बिना जन्मदिन और मकरसंक्रांति मनाना इतने सालों बाद भी मुश्किल लगता है।
आजी साथ थी तब तक जिन्दगी बहुत आसान लगती थी। तब तक जिन्दगी में दुःख क्या होते हैं ये मुझे पता ही नहीं था।
आजी साथ थी तब तक जिन्दगी बहुत आसान लगती थी। तब तक जिन्दगी में दुःख क्या होते हैं ये मुझे पता ही नहीं था।
एक सपना है मेरा
सच हो ऐसा कभी
चुराने हैं कुछ पल
गुजरे कल से
जीने हैं फिरसे नए नए
से
लिखने हैं जिन्दगी
के कुछ पन्ने
नए सिरे से
सच हो ऐसा कभी!
क्या हो सकता है सच ऐसा कभी?
क्या हो सकता है सच ऐसा कभी?
आजी जब आप मेरे साथ
थी
जब हम कितनी बातें
किया करते थे
मैं आपसे रूठती थी
आप प्यार से प्यार ही सिखाती थी
आपकी मीठी आवाज
आपका प्यार
कुछ पल जिन्दगी में
फिरसे लौट आए...
गुजरे कल से आपका
प्यार
आनेवाले कल के लिए
लौट आए
आजी, आपको कितनी कविताएं
दिखानी हैं
आपको कितनी सारी
बातें बतानी हैं
कितने साल हो गए
हमने बात नहीं की
आप लौट आइये ना उस दुनिया से
मेरे बिना आप कैसे
.....
कहाँ.....
फिरसे आपकी आवाज में
भजन सुनना है
एक नया आदर्श
एक नया सिद्धांत
एक नया संस्कार
सीखना है...
आपने भक्ति सिखाई
आपने रामसे मिलाया
आपने प्यार सिखाया
आपने प्रार्थना
सिखाई
एक कमजोर और बेबस की प्रार्थना नहीं
आपने प्यार, भक्ति और शक्ति की प्रार्थना सिखाई
आपका हर संस्कार
आपकी हर प्रेरणा
आपकी भक्ति, त्याग, तपस्या
शक्ति बन गए मेरे
जीवन के हर क्षण में
आपने सादगी, विनय, प्रेम....भक्ति
अपनी जिन्दगी से
दिखाया
शब्दों से ही नहीं
खुद जीकर सिखाया
अपने संघर्ष से लड़ना
सिखाया
खुद अँधेरे में रहकर भी
प्रकाश देना सिखाया
आपके बिना मेरी हर
ख़ुशी अधूरी है
आज भी
जन्मदिवस या मकरसंक्रांति
आपके बिना
जीवन का हर
संक्रमण
आपके प्यारभरे
आशीर्वाद बिना
अधूरा है
आज भी...--मोहिनी
@chaitanyapuja_
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