रात के साढ़े ग्यारह बजे हमारी बस मुंबई से धुले की ओर चल पड़ी । बस धीरे धीरे शहर को छोड़कर हाईवे पर आते ही अपनी रफ़्तार तेज करने लगी। दो दिन मुंबई की अपरिचित भाग दौड़ से छूटकर अपने शांत धुले की ओर मेरा मन बस के साथ साथ तेजी से चलने के बजाय अभी भी भगवान स्वामीनारायण के मंदिर में ही रुका हुआ था। शांत, अविचल। भगवान की अति सुन्दर मूर्ती और मैं।
बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के दादर स्थित मंदिर में हर दिन पांच बार होनेवाली भगवान की आरती और दर्शन का लाभ पूरे दो दिन मिला था। जिंदगी में फिर कभी ऐसा अवसर फिर आएगा या नहीं इसका कोई विचार मनमें नहीं था, बस भगवान की मुस्कुराती छवि आखों से हट नहीं रही थी।
२००९ में, तब जिंदगी में स्मार्टफोन भी नहीं था, तब ये कविता लिखी थी। तब ब्लॉगिंग शुरू नहीं किया था। अब यह स्मृति किसी और जमाने की सी लगती है।
नयनाभिराम ये मूरत तेरी
साँवलेसे मेरे प्रभु छोगलाधारी
प्रेमवर्षा करती रहती
मुझपर सुंदर छवि तेरी
उन दो दिनों की छोटीसी आझादी में मेरी कलम मानों ख़ुशी से पागल सी हो गई थी।
२००९ में, तब जिंदगी में स्मार्टफोन भी नहीं था, तब ये कविता लिखी थी। तब ब्लॉगिंग शुरू नहीं किया था। अब यह स्मृति किसी और जमाने की सी लगती है।
जिस आनंदमग्न मन ने ये कविता लिखी थी वह स्मृति आज भी इतनी सुस्पष्ट है जैसे मैं मनसे अभी भी वहीं हूँ।
"नयनाभिराम"
( ये प्रतिमा धुले के स्वामीनारायण मंदिर में घनश्याम की है। )
नयनाभिराम ये मूरत तेरी
साँवलेसे मेरे प्रभु छोगलाधारी
प्रेमवर्षा करती रहती
मुझपर सुंदर छवि तेरी
भोलाभाला नटखट प्यारा
श्यामसुंदर हरिकृष्ण मेरा
नयनों का प्रेम जो देखूं तेरा
हरखे हरखे अति मन यह मेरा
श्यामसुंदर हरिकृष्ण मेरा
नयनों का प्रेम जो देखूं तेरा
हरखे हरखे अति मन यह मेरा
क्यों ऐसे प्यारसे देखे रे
पागल पागल तू मुझको कर दे
पागल पागल तू मुझको कर दे
प्रियतम प्यारे सखा मेरे
तुझ बिन जीवन क्यों मैं गंवाया
ऐसी सुंदरता कहीं न देखी
उसे भूलकर बस दुनिया देखी
दुख दिए सदा ही मोहजालने
प्रेमहि दिया मेरे प्रियतमने
अबके मिले कभी न बिछड़े
प्रार्थना स्वीकारो हरिकृष्ण मेरे
आंसू अब बहे बस प्रेमके ही
आनंदमय बस तेरे नाम के ही
बता दे तू राज क्या है
इस प्रेमका जो तुझमें है
तू तो ठहरा प्रेमरूप रे
सौंदर्य और आनंदरूप रे
हे सखे, सुन तो बात यह
तेरे जैसा तू मुझको बना दे
तुझ बिन जीवन क्यों मैं गंवाया
ऐसी सुंदरता कहीं न देखी
उसे भूलकर बस दुनिया देखी
दुख दिए सदा ही मोहजालने
प्रेमहि दिया मेरे प्रियतमने
अबके मिले कभी न बिछड़े
प्रार्थना स्वीकारो हरिकृष्ण मेरे
आंसू अब बहे बस प्रेमके ही
आनंदमय बस तेरे नाम के ही
बता दे तू राज क्या है
इस प्रेमका जो तुझमें है
तू तो ठहरा प्रेमरूप रे
सौंदर्य और आनंदरूप रे
हे सखे, सुन तो बात यह
तेरे जैसा तू मुझको बना दे
तेरे प्रेम में ही जीवन रंग जाए
तेरे संग में ही मन रम जाए
अबके मिले कभी न बिछड़े
प्रार्थना स्वीकारो हरिकृष्ण मेरे
प्रार्थना स्वीकारो हरिकृष्ण मेरे
प्रार्थना स्वीकारो हरिकृष्ण मेरे
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चैतन्यपूजा मे आपके सुंदर और पवित्र शब्दपुष्प.