भावस्पंदन: मौन का प्रकाश

आजका आलेख और कविता महायोग आध्यात्मिक साधना और मौन के बारे में है। आज के व्यस्त जीवनपद्धति में मौन को वास्तव में जीवन में लाने के लिए थोड़े अलग सन्दर्भों में देखने की आवश्यकता है।

साधना में आवरण आने से कभी कभी साधना की सिद्धि और प्रभाव के विषय में मनमें संशय उत्पन्न होता है आवरण चाहे किसी भी कारण से आये वो साधना से ही नष्ट होता है। साधना से कुछ होगा या नहीं, साधना का प्रभाव और अनुभव खंडित क्यों हो जाता है, इस तरह के संशयों के कारण मन साधना से उदासीन होने लगता है। साधना, भगवती कुण्डलिनी अपना कार्य तबतक करती रहती है जब तक साधक को जीव और शिव के एकत्व का अनुभव ना करा दे। इसलिए धैर्य से साधना के लिए नियमित निश्चिन्त समय निकलना अत्यंत आवश्यक है।

मौन आध्यात्मिक साधना के लिए निश्चित ही पूरक साबित होता है। पर मेरे विचारसे मौन केवल ना बोलना और चुप रहना ही नहीं है। मौन के साथ मन, ध्यान और साधना के लिये तडपता रहे तो वो प्रगति का चिन्ह होता है। इसके अलावा मन को भटकानेवाले साधन हम दूर रख पाये तो भी मौन का उद्देश्य सफल होता है। ईशकृपा से मन को व्यस्त और चंचल करनेवाले साधन जैसे, सोशल मीडिया या बार बार मीडिया देखना, गेम्स इनसे मन स्वयं ही उदासीन होने लगे तब साधना के लिए अनुकूल समय और मनकी स्थिति भी बनती है। कुण्डलिनी साधना हर हाल में बंद नहीं होती, चाहे आवरण के कारण अनुभव में बाधा भी आये। माँ भगवती अपने साधक को पलभर के लिए भी अपने आपसे दूर नहीं करती ये बात केवल विश्वास की ही नहीं लेकीन पूर्ण सत्य है। मेरा ये तो कहना नहीं की साधना के लिए दीर्घकालीन मौन आवश्यक ही है. लेकिन अगर हम ऐसा कुछ समय एकांतवास के लिए निकाल पाए तो वो साधना में डूबने के लिए मदद करता है। मैंने तनाव के कारण पिछले वर्ष फेसबुक का अपना प्रोफाइल बंद किया था। इस वर्ष रेडियो की आदत छूट गई।इसके बाद मन का तनाव कम करने के लिए मुझे समय मिला।

आजकल हम तकनीक के साथ इतने जुड़े हुए होते हैं कि इसका असर हमारी नींद पर, हमारी विचारप्रक्रिया और क्षमता पर हो रहा है। सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट, ऐप, गेम्स इन सबकी रचना ऐसे की जाती है कि उनसे प्रयोगकर्ता बाहर ना निकले। इससे हमारी आदतें ऐसी बदलती है कि हमारे समझ में भी नहीं आता, हमारे मनका नियंत्रण अप्रत्यक्ष रूपसे ऐप्स या गेम्स कर रहे हैं। ये सब हम छोड़ तो नहीं सकते क्योंकि तकनीक के बिना हमारा काम नहीं चल सकता, लेकिन हम इन सबका प्रयोग थोडा कम जरूर कर सकते हैं। तकनीक हमारे लिए उपयुक्त है अगर उनका नियंत्रण हम खुद करें।   

अगर हम हररोज कुछ नियमित समय साधना, ध्यान और मौन के लिए निकाल पाए तो व्यस्त जीवन में भी मनको शांत और तनावरहित रखा जा सकता है।

मौन
गहरी आत्मानुभूति के लिए
अन्तःप्रकाश को जगाता
मौन
आत्मज्ञान को प्रकाशित करता
अज्ञान के आवरण से आत्मा को मुक्त करता
वो अज्ञान जिसने जन्म का कारण भूला दिया
वो अज्ञान जो संशयों के पीछे दौड़ाता है
वो अज्ञान जो मनपर बोझ डालता है
अनावश्यक, अनसमझी इच्छाओंका
जिन्हें हम अपना मान बैठे थे

बस एक आभास जिंदगी का
जिसने जिन्दगी से ही हमें दूर कर दिया

मौन
आत्मा के लिए
रुको, जानो और जियो
निर्विकार आत्मा पर अज्ञान का आवरण खोलो
मौन
जिंदगी के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति से मिलने के लिए,
अपने आपसे मिलने के लिए



This poem in English: Uncovering The Soul

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