ईद-उल-फ़ित्र की इबादत की
इबादत में कुछ पंक्तियां...
प्रतिमा सौजन्य: http://indiatoday.intoday.in/
नशा ये
कैसा आसमान से आया है
इबादत
करते आँखें खुल नहीं पाती
इबादत में
तेरी दिल कितना डूब गया, ऐ खुदा!
ये जान अब होश में आ नहीं पाती
अब इबादतगाह जाने की जरूरत नहीं मुझे
मेरा दिल
तेरी इबादत का घर बन गया है
तेरी
इबादत में कुछ कहने की जरूरत नहीं मुझे
इन होठों
पर जबसे तुम्हारा नाम बस गया
इबादत इबादत होती है
दिल से एक दुआ उठती है
होठों के कुछ कहे बिना
दुआ हमारे खुदा तक पहुँच जाती है
ये इबादत
ही मोहोब्बत बन गई है
ये इबादत
ही दिल की तमन्ना बन गई है
अब तुझसे
क्या माँगू, ऐ मेरे खुदा!
तेरी इबादत ही
मेरी जिंदगी बन गई है
इश्क हकीकी पर अन्य काव्य:
ट्विटर पर जुड़ें: @chaitanyapuja_