स्तोत्र: प्राणाधार रामरक्षा

आजका काव्य रामरक्षा स्तोत्र को अर्पित है

कवच और रामरक्षा स्तोत्र: 

हम ईश्वर की अनेकों रूपों में आराधना करते हैं इन रूपों की स्तुति और प्रार्थना के लिए अनगिनत स्तोत्र पुराणों में और आधुनिक समय में आदि शंकराचार्य जैसे महान योगियोंने भी गाएं हैं

विभिन्न प्रार्थनाएं और स्तोत्रों में 'कवच' नाम से प्रार्थना प्रसिद्ध हैंकवच वो प्रार्थना होती है जिसमें अपने इष्टदेव से शरीर और मनकी रक्षा के लिए प्रार्थना होती है रोग, शोक और संकटों से रक्षा के लिए भगवान से विशिष्ट प्रार्थना के माध्यम से निवेदन किया जाता है 

Image: Shreeram, Laxman, Maa Seetaji

इन कवचों में भी 'रामरक्षा' स्तोत्र लोगों के हृदय में बसा हुआ है। रामरक्षा में प्रभु श्रीराम से रक्षा की प्रार्थना है और उनके नाम और गुणों का वर्णन भी है रामरक्षा स्तोत्र के शब्द बहुत ही मधुर है, इसका गान करते ही, इसे एक बार सुनते ही ये मनको मन्त्रमुग्ध कर देते हैं जहाँ रामका नाम है, वहां मनकी शांति और आनंद है ही 

रामरक्षा में ही कहा गया है कि भगवान शंकर ने स्वप्न में जैसी रामरक्षा 
बताईबुधकौशिक ऋषि ने वैसी ही प्रातः  लिखी।

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
     तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:॥१५॥

प्राणाधार रामरक्षा:

आज का काव्य रामरक्षा स्तोत्र के लिए रामरक्षा स्तोत्र के गान से प्रभु श्रीराम के प्रति विश्वास दृढ़ होने लगता है इसका प्रभाव ही ऐसा है, भगवान राम की ओर मन आकर्षित हुए बिना रह ही नहीं सकता भक्तियोग के साधकों और राम के भक्तों के लिए रामरक्षा स्तोत्रगान अमृतपान के समान ही है 

Image: स्तोत्र प्राणाधार रामरक्षा


अंतर्मन का अंतरकलह

रामनाम में लीन हो गया॥१ 

प्रश्न हजारों अनसुलझे लेकर

रामप्रेम का उत्तर लाया॥२

भटक भटक कर दुनियाभर में
थककर मन जब हार गया॥३
हारकर अपने चुभते द्वंद्वोंसे
रामनाम में पिघल गया॥४
द्वंद्व मिट गए
मोह मिट गया
रामनाम में भव दुःख मिट गया॥५
प्राणाधार रामरक्षा ने
भक्ति में मनको लीन कर लिया॥६
रक्षा मनके दुःखों से
अविरत चलते द्वंद्वोंसे
रक्षा विषाद विषसे
कर्मप्रवाह बाधित करते दुखभरे खेद से॥७
रामनाम की औषधि
रक्षा हृदय जलानेवाली
अपराधभावना से

रक्षा जीवन के, इस मनके
हर क्लेश से॥८
प्राणाधार रामरक्षा
रक्षा करे जीवन के हर क्लेश से॥९ 
मनके तपते दुखों में 
कोमल शीतल जलधार है रामरक्षा॥१० 
समाज द्वारा थोपी अग्निपरीक्षाओं में 
मनका सुरक्षाकवच है रामरक्षा॥११
मनके हर क्लेश से मुक्तिदायक है 
प्राणाधार है रामरक्षा॥१२ 

रामरक्षा के माहात्म्य में कुछ बातें प्रसिद्ध हैं रामरक्षा जैसे संस्कृत स्तोत्रों के पाठ से उच्चारण शुद्ध होने लगता है, बोलने के दोष दूर होते हैं  कहा जाता है कि रामरक्षा मन का सामर्थ्य बढाती है

पर मुझे लगता है, भगवान श्रीराम के प्रेम के लिए किसी फायदे की या वैज्ञानिक आधार की आवश्यकता नहीं। प्रेम तो फायदा देखकर किया भी नहीं जाता राम, कृष्ण, राधा के स्वामी, मेरे स्वामी इतना प्रेमपूर्वक स्मरण करना भी आँखों में प्रेम से आंसू ला देता है ये राम के नाम का जादू है 

रामरक्षा का माहात्म्य मुझे जैसे समझ में आ रहा है, मैंने लिखने का प्रयास किया है और मेरा नजरिया भक्ति का है 

अंतर्मन का अंतर्कलह: हमारा हर कर्म, दूसरों के हमें प्रभावित करनेवाले कर्म, हमारी जीवनशैली इन सबका असर गहरा प्रभाव अंतर्मन में जमा होता जाता है हमारे आगे के कर्म भी इस अंतर्मन से बाह्यमनमें पूर्वकर्मों का परिणाम बनकर बाहर आते हैं इस तरह से कर्मों का चक्र चलता रहता है यही संसार है, जिसे भवरोग कहते हैं अंतर्मन में कलह हो रहा है या शांति ये हमें तब तक महसूस नहीं होता जब तक ये हमारे बाहरी मन में और हमारे कामों में दिखने ना लगे रामरक्षा का प्रभाव, मुझे लगता है कि उस अंतर्मन को शांति से भरता है 

रामरक्षा स्तोत्र में कहा भी है, 

"भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।
     तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥३६॥"

ये भवबीज है अनंत दुःखों का कारण, उसे रामनाम नष्ट कर देता हैपर इसका अर्थ संसार का त्याग करके बैरागी बनना नहीं है हमारे मन के दुखों का कारण रामनाम नष्ट कर देता है मनके ये हजारों लाखों अनगिनत द्वंद्वों को गिनने और समझने का समय भी आज हमारे पास नहीं है पर उनसे गुजरना तो सबको पड़ता ही है। वास्तविक सुख का अनुभव ये द्वंद्व मिटने पर ही होता है और ये राम की कृपा से, रामरक्षा से संभव होता है 

समाज द्वारा थोपी अग्निपरीक्षा: इस बारे में लिखने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि हर महिला, युवती, विवाहित या अविवाहित, सबको इसका अनुभव होता ही है। समाज में फ़ैली हुई वैचारिक गन्दगी से विचलित ना होते हुए अपने कार्य को तन्मयता से करने में मनकी स्थिरता जरूरी है। ये स्थिरता राम और रामरक्षा स्तोत्र की कृपा से धीरे धीरे आती है, ऐसा मुझे लगता है।

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