हाल ही में एक बड़े लोकतान्त्रिक देश
की अजीब बहस छिड़ गई है।देश लोकतान्त्रिक है इसलिए उस देश के लोगों को बहस करना
बहुत पसंद है और हर व्यक्ति को अपना मत भी रखना ही है।
हुआ ये कि इस बहसलैंड में एक दिन दो
लोगों में कुछ बहस हुई और एकने दुसरे से कहा, “इतनीसी बात को समझते क्यों नहीं? अक्ल बड़ी
या भैस?” बस इतना बोलने की देर थी; इसपर तो बड़ी राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ गई।
जैसे जैसे बहस फैलने
लगी इस प्रश्न का निर्णय करना बहुत ही मुश्किल होने लगा।
आखिर किसे बड़ा मानना चाहिए?
अक्ल को या भैस को? बहस का मुद्दा बन गया।
एक नेताजी गुस्से में आकर बोले, ये भैस का
अपमान है। ये अपमान हम नहीं सहेंगे। हमारे विरोधियों का ये देश के पशुओं के
विरुद्ध षड्यंत्र है। भैस की तुलना अक्ल से करके इन लोगोंने देशद्रोह किया है।
दुसरे संगठन के नेता ने शांति से
समझाया, “भैस इतनी बड़ी होती है, सब देखते हैं,
भाई, बताओ, अक्ल किसीने देखी है? हमने इतने
वर्ष राजनीति की है, देशभक्ति की है हमने तो कभी अक्ल देखी नहीं। आप बताइए ये
तुलना हो ही कैसे सकती है, कैसे दिखती है अक्ल? और ये अक्ल रहती कहाँ है?"
उसी दौरान पत्रकारों ने एक बड़े
सुपरस्टार को पूछ लिया, “देश में बहस चल रही है, अक्ल बड़ी या भैस आपको क्या लगता है?” अभिनेता
ने बहुत सोचते हुए (या सोचने का अभिनय करते हुए) कहा, "शायद अक्ल बड़ी हो, भैस की
तुलना में।"
बस इतना कहने की देर थी, अभिनेता के विरोध में देशभर में आंदोलन शुरू हो गए। अभिनेता बेचारे आजकल भैस पर
फिल्म बनाने की सोच रहे हैं।
और फिर चैनलों पर बहस शुरू हो गई। एक
एक शब्द भुना भुनाकर बहसें बढ़ाने का इतना अच्छा मौका कौन छोड़ेगा!
"आज रात चर्चा करेंगे अक्ल बड़ी
या भैस। साथ में १० दलों के १५ प्रवक्ताओं का पैनल भी होगा। सबको आधा आधा सेकंड
बोलने का मौका जरूर मिलेगा आप भी अपने मत बताइए – पूरे आधे सेकंड में।"
हर शाम हर चैनल पर इसी विषय पर बहस
होने लगी। अक्ल के पक्षधर और अक्ल को ना माननेवाले इन दोनों गुटों में पूरा देश
बंट गया। इन सबके बीच बेचारी भैस को बेवजह नफरत, तारीफ, या मजाक का शिकार होना पड़ा। अक्ल के समर्थक
भैस का मजाक उड़ाकर अक्ल साबित करते दिखें तो अक्ल से नफरत करनेवालों ने भैस का
गुणगान शुरू कर दिया।
ओपिनियन पोल हुआ,
अक्ल बड़ी या भैस? आपको क्या
लगता है?
७० फीसदी लोगों का कहना था कि भैस की
तुलना अक्ल से नहीं हो सकती ये भैस का अपमान है।
२८ फीसदी लोगों ने कहा कि हमारी अक्ल
के साथ अन्याय हो रहा है।
और
१२ फीसदी का कहना था कि
कुछ कह नहीं सकते।
हालाँकि कुछ प्रतिष्ठित लोगों का
मानना था कि ये मुद्दा काफी जटिल है, इसलिए इसपर मिल बैठकर चर्चा होनी चाहिए। ऐसा
कोइ रास्ता निकाला जाये जिससे अक्ल और भैस दोनों पर अन्याय ना हो और इस मुद्दे का
कुछ शांतिपूर्ण समाधान निकाला जाए।
पर गुस्साए लोगों का मानना था कि हम
अक्ल ये शब्द भी सुन नहीं सकते। अक्ल का हमारे देश में कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
पत्रकार भी बंट गए। एक चैनल ने भैस
की उपयोगिता पर एक्सक्लूसिव सीरीज शुरू की तो दूसरे चैनल के एंकर निकल पड़े जनता के
बीच।
"क्या आपने अक्ल देखी है?"
"अक्ल औरत है या मर्द?"
"उनकी उम्र कितनी है?"
"क्या वो शादीशुदा है?"
लोगों के जवाब भी बेमिसाल थे।
“पता नहीं।”
“हम भैस का दूध पीते है, अक्ल के बारे में कभी सुना नहीं।”
देश में चाहे जो भी हो अपनी ही
दुनिया में मस्त रहनेवालों ने कहा,
कुछ नहीं...कुछ कहा ही नहीं!
सिर्फ हसने लगे जोर जोर से!
और कुछ लोगों ने पूछा,
“क्या ये किसी नई फिल्म का नाम है?”
"अरे ये अक्ल शब्द अभी निकला है, भैस कितने
पुराने ज़माने से है,
हमने तो अक्ल के बारे में अब तक सुना
नहीं था।"
जाहिर सी बात है कि कोई भी राजनैतिक
दल इस विषय को अपने फायदे के लिए भड़काने से नहीं चूका। सबने अपनी अपनी सोशल मीडिया
टीमें लगा दी...गालियों के काम में।
ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड हुए,
#भैसकाअपमानदेशकाअपमान
#चापलूसोंकीभैसगईपानीमें
कहीं अक्ल को माननेवालों पर कानून
तोड़ने का आरोप लगा तो कहीं देशद्रोह का आरोप लगा, लाठीचार्ज हुआ। एक दूसरे के सर फोड़े गए, ये सोचकर
कि कहीं सारी फसाद की जड़ अक्ल सर में ना छुपी हुई हो। पर अक्ल का कहीं कोई
नामोनिशान नहीं दिख रहा था।
वहीं एक धार्मिक बाबा कहना था, "भैस दूध देती है, उससे घी मिठाइयां बनती है। हमारे आश्रम का घी बहुत शुद्ध होता
है। क्योंकि ये देसी भैसों के दूध से बना होता है। इसे ज्यादा से ज्यादा खरीदकर
अपनी देशभक्ति जताएं।
एक नेता ने कहा,
"कोई गर्दन पे तलवार भी रख दें हम
अक्ल और भैस दोनों को नहीं मानेंगे। और अक्ल को तो हर हाल में नहीं।"
और कुछ लोगों ने कहा कि ये देश के
अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फ़ैलाने का षडयंत्र है। वैसे किसी भी मुद्दे के साथ ये
लाइन जोड़ना इस देश में परंपरा रही है।
और इस जंग में पीएचडी करनेवाले छात्र
कूद पड़े, उनका कहना था, "अक्ल होती ही होगी ऐसा हमें लगता है, इसी बात
पर हम संशोधन कर रहे हैं।"
इसपर एक महानुभाव ने कहा,"अक्ल की बात करनेवाला ये डॉक्टर कैसा डॉक्टर बनेगा? मरीजों का
इलाज करने के लिए भला अक्ल की क्या जरूरत!"
किसी ने कहा भैस को राष्ट्रीय प्राणी
घोषित करना चाहिए। पर तभी सवाल उभरा, "गाय का क्या होगा।" गाय या भैस
कौन राष्ट्रीय प्राणी हो इसपर नई बहस छिड़ गई। चैनलवालों की टीआरपी बढ़ने लगी। लोग
बहसों में इतनी दिलचस्पी लेने लगे कि सिर्फ इसी बहस के लिए नए नए चैनल शुरू हो गए। लोगों ने रियलिटी शो, कॉमेडी और डांस शो देखने छोड़ ही दिए। सबको लगने लगा
कि इस मुद्दे का फैसला करना ही हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। इसलिए घर घर में लोग
अक्ल बड़ी या भैस इसका हल निकालने के लिए आपस में लड़ने लगे।
बुद्धिजीवी वर्ग ने कहा कि बुद्धि से
बढ़कर कुछ नहीं। अगर बुद्धि को नहीं माने तो हम जिए कैसे? फिर क्या
था बुद्धि के ही खिलाफ मोर्चे भी निकाले गए।
कुछ लोगों ने मांग की, “अक्ल शब्द
और अक्ल से संबंधी हर शब्द को बैन कर दिया जाना चाहिए, जैसे अक्ल के अंधे, अक्ल के दुश्मन।”
वैज्ञानिकों का कहना था कि भैस भी
अक्ल का प्रयोग करती है तो हम मनुष्यों ने अक्ल के मुद्दे पर बहस करने का कोई कारण
नहीं। अक्ल का प्रयोग सबने करना चाहिए।
हालांकि इस मत में कोई मसाला भरना
संभव नहीं था, ना इससे आग और फैलती इसलिए इसे सबने अनदेखा कर दिया और इस
तरह से पूरे देश में अक्ल का अकाल पड गया।
ये बहस उस देश में अभी भी चल ही रही
है।
अच्छा है कि हमारे देश में सब लोग
बहुत सोच समझकर ही बोलते हैं।
अस्वीकृती: ये आलेख पूर्णतः काल्पनिक है। इसका किसी वास्तविक घटना या लोगों से दूर दूर तक सम्बन्ध नहीं।