आज
गोंदवले के भगवान श्रीराम के लिए एक प्रार्थना। गोंदवले में दिवाली में बड़ा उत्सव होता है। कुछ वर्ष पहले गोंदवले में दो दिन रहने का
सौभाग्य मुझे मिला था। तबकी कुछ यादें भी आजकी प्रस्तुति में ...
श्री
ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज:
गोंदवले
में एक महान संत हुए थे,
(१८४५-१९१३)
जिन्होंने भगवान राम के ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ नामजप का प्रचार प्रसार किया था। उन्हें कोई गोंदवलेकर महाराज कहते थे, कोई ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज कहते
थे। महाराष्ट्र के लोगों में गोंदवलेकर महाराज
के उपदेश और रामनाम के ज़प के प्रति बहुत श्रद्धा है। मैं जब वहां थी, वे दो दिन इतनी गहरी शांति की अनुभूति थे
कि मैं आज भी उन्हें स्मरण करती हूँ तो मन बाह्य विषयों से
हटकर उसी शांति में स्थिर हो जाता है। उत्सव में मैं कभी गई नहीं थी, लेकिन मुझे बार बार वहांके मंदिर की और उन दिनों की याद आती रहती है। इसलिए सोचा आज गोंदवले पर ही लिखते हैं। दिवाली में अपने दोस्त के साथ होने का
आनन्द बहुत बड़ा होता है। तो क्यों न ये संध्या मन से ही सही
गोंदवले के भगवान श्रीराम के साथ, उनके
स्मरण में ही बिताई जाए।
गोंदवले
की भगवान राम के साथ यादें:
भगवान
के नाम का जप करना साधना का ही एक प्रकार है, जिसे नामसाधना कहा जाता है। हम जब वहां गए थे, वहांकी सादगी और शांति में मेरा मन खो गया था। वहां पैसे का लालच, अंधश्रद्धा और लालच के कारण लोगों में भेदभाव ये सब
बिलकुल भी नहीं था। मंदिर के सामने बड़ा सभामंडप है। सभामंडप में लोग बैठकर राम के नाम का जप
कर सकते हैं। हम वहां गए थे, तब १३ करोड़ जप का संकल्प वहां चल रहा था। जप के लिए मालाएँ भी होती हैं। मंदिर मैं बैठकर इधर उधर की बातें, चर्चा पूरी तरह से मना है। मंदिर में मौन होकर जप करना सूचित किया
गया है। बातें करनी ही हो तो मंदिर के बाहर बात कर
सकते हैं। मुझे यह नियम सबसे अच्छा लगा। यह नियम सारे मंदिरों में होना चाहिए, क्योंकी अक्सर भगवान के सामने ही इधर उधर
की बाते शुरू हो जाती हैं। किसीको कुछ पल भगवान के दर्शन के लिए जाना
हो, किसीको भगवान से मन ही मन प्रार्थना करनी
हो या अपनी वेदना और सुख-दुःख भगवान के साथ बाँटने हो तो उन भक्तों के लिए ये
शांति असंभव हो जाती है। आजकल तो मोबाइल लेकर मंदिर में गाने और
रिंगटोन भी शुरू हो जाते हैं।
गोंदवलेकर
संस्थान में ऐसा कुछ भी नहीं था। ये
उपक्रम कितना सुन्दर है, भगवान की आराधना से तो शांति ही फैलती है। मन में अनंत विचार और द्वंद्व उठते रहना, मन का स्वभाव है पर नाम जप से या साधना से
अन्तःशुद्धि होती रहती है। मन शांत होता जाता है| और भक्तों के जीवन में भक्ति की वृद्धि
होती रहती है। वहां गोशाला भी थी| मैंने इतनी बड़ी गोशाला पहली बार ही देखी
थी। वहां तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई, गायों और बछड़ों से बातें करके।
मंदिर
के सभामंडप में लोग दिनभर शांति से 'श्रीराम जय राम जय जय राम' का जाप कर सकते हैं। शाम
को आरती होती है। ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज के
प्रतिदिन के प्रवचन का पठन होता है। फिर कुछ भजन होते हैं। मैं जब वहां गई थी, तब एक कर्नाटक के भक्त वहां आए थे, उन्होंने कन्नड़ में एक भजन गाया। मुझे एक शब्द भी समझ में नहीं आया था और भाषा भी कन्नड़ होने का मेरा
अनुमान ही है, पर उनके भजन के भक्ति भाव ने मनको भक्तिरस
से भर दिया था।
रात
को शेजारती अर्थात भगवान को सोने की प्रार्थना करनेवाली आरती होती है। हम मंदिर बंद होने तक वहीँ रुके थे। शेजारती के बाद पुजारियों ने भक्तिमय भजन
गाएं। सुबह से जिन पुजारियों को मैं शांति से
मंदिर के रोज की पूजा-आरती और सारे नियमित काम देख रही थीं, वे इतने सुन्दर गा रहे थे यह देखकर तो
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। इतनी भक्ति, इतनी सुन्दर आवाज, और
इतनी सादगी, कोई नाम नहीं, प्रसिद्धी की कोई लालसा नहीं सिर्फ भगवान
के लिए ही गाना, भगवान राम की कितनी कृपा हैं उनपर।
गोंदवले
में हम गर्मियों में गए थे, वहां का तापमान भी ज्यादा ही रहता है, लेकिन वहां बिताया एक- एक पल केवल शांति
से ही पूर्ण था।
जिन
भक्तों ने इतने नि:स्वार्थ भाव से इतना सुन्दर भक्ति का स्वर्ग गोंदवले में बनाया
हैं, उनको मेरा प्रणाम।
बस
इस दिवाली भगवान राम के साथ वैसेही हर पल बिताने का मन कर रहा है...मनसे ही
सही...उनके साथ...
भगवान
राम से प्रार्थना: जपना है बस तुम्हाराही नाम मेरे राम
फिरसे
बुलाओ अपने धाम
मेरे
राम
जपना
है बस एक तुम्हारा ही नाम
बुलाओ
अब तो
मेरे
राम
बहुत
भटक रही अज्ञान के भ्रम में
फिरसे
बुलाओ अपने धाम
मेरे
राम
दुनिया
अजनबीसी लागे तुम्हारे बिना
सूझे
न मुझको अब कोई काम
तुम्हारे
बिना
मन
कैसे पाए विश्राम
मेरे
राम
फिरसे
बुलाओ अपने धाम
भगवान
का धाम अर्थात वैकुण्ठ या गोलोक या साकेत धाम। इसलिए इसे जीवन के बाद की गति माना जाता है, जो मुझे उतना यथार्थ नहीं लगता। अगर योग की दृष्टि से देखा जाए तो मुझे
ऐसा समझ में आता है कि ईश्वर के पूर्ण आनंद और प्रेम के स्वरूप में मन का लय होना। इसीलिए मेरी ये श्रीराम से प्रार्थना है
कि अपने धाम में अर्थात अपने आनंद स्वरूप में मेरे मनको बुला लो।
भगवान
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