आज की प्रस्तुति समाज के हर वर्ग के हर व्यक्ति के लिए है| अपने विवेक या अविवेक का आत्मपरीक्षण हर किसी ने करना चाहिए|
आँखें होकर भी अंधे
सुन सकते हैं पर बहरे
और
बोल सकते हैं पर मूक
कठपुतलियां
या खिलौने?
शोषित या शोषक?
या
शोषित
होकर भी शोषण करनेवाले?
बेबस,
लाचार, हारे हुए
फिर भी...
वार करनेवाले
अपना शोषक
मिलनेतक!
अपना शोषण
होनेतक!
अपनी बेबसीसे भी खुश रहनेवाले
अपने शोषित होनेसे गर्वित होनेवाले
असंवेदनशील
अपने ही अनजान नशे में चूर
बेहोश...
क्षमा या
दया?
क्या हो
मेरी भावना?
या मैं बनूँ
बेजुबान
मृत समाज का हिस्सा?बेजुबान मृत समाज का हिस्सा बनना है या अपने अस्तित्व के साथ वास्तव में 'जीना' है, यह हर किसी ने खुद ही तय करना चाहिए|