बेन्यामिन नेतान्याहू का अमरीकी संसद में भाषण देखने के बाद हमारे देश में हम
किसी नेता के नेतृत्व को प्रभावी क्यों माने, उनमें ऐसी क्या बात है जो उन्हें खास
बनाती है, इस पर आम तौर पर मीडिया में और सोशल मिडिया में, लोगों में जिस तरह की
चर्चा होती है, वह याद आया| हमारी नेतृत्व कल्पनाओं पर कुछ विचार और कुछ प्रश्न!
बेन्यामिन नेतान्याहू का भाषण और उनका नेतृत्व :
कल बेन्यामिन नेतान्याहू का
अमरीकी संसद में भाषण सुना| नेतान्याहू के आते ही सबने खड़े होकर जोरदार तालियों से
उनका स्वागत किया और वे सबसे मिले | सबसे हस्तांदोलन करते करते और बात करते करते वह
मंच तक पहुचे |
जब उनका भाषण चल रहा था तब उन्होंने उठाए मुद्दों पर सदन तालियों से गूंजता रहा, बार बार गूंजता रहा| खड़े
होकर सांसद तालियाँ बजा रहे थे| टाइम्स ऑफ़
इस्राएल के अनुसार स्टैंडिंग ओवेशन २५ हुआ|
नेतान्याहू ने अमरीकी
राष्ट्रपति बराक ओबामा को और अमरीका को धन्यवाद दिए| और ईरान के बारे में बोलने को
शुरुवात की| मैं इस भाषण का वीडियो देख रही थी | उन्होंने ईरान एक ट्वीट के बारे में
बता कर शुरुवात की, जिसमें इस्राएल के विनाश का संकल्प था|
उन्होंने अपना पक्ष पुरजोर
तरीके से रखा, सारे पहलू, छोटे छोटे मुद्दों में कहें | और उनके मुद्दों पर अमरीकी
सांसद उठ खड़े होते रहे, तालियाँ रूकने का नाम नहीं था |
अपने भाषण के शब्द खुद
उन्हें हाथों से सम्पादित भी किये दिखे|
पूरे भाषण में अपने राष्ट्र
का हित, अमरीका का हित और शांति इस तरह से उन्होंने मुद्दे रखे|
अपने बारे में कोई बात
नहीं की |
हमें तो आदत है, हमारे
नेताओं की अपने ही बारे में बोलने की, अपनी यादें, अपने किस्से कहानियां सुनाने
की!
वह भाषण सुनते सुनते एक पल
मुझे लगा, यह अपने देश के बारे में कितना सोच रहें हैं|
जाहिर सी बात है, किसी भी देश के राष्ट्रप्रमुख
हो, अपने देशहित के बारे में सोचेंगे |
पता नहीं, क्यों मैं यह बात भूल गयी!
आप शायद यह कहें कि इस्राएल
में चुनाव है और इसलिए वह यह कह रहें थे|
पर शार्ली हेब्दो पर हुए
हमले के बाद, जब यहूदियों की सुरक्षा का प्रश्न उठा तो उन्होंने साफ़ साफ़ यह कह दिया
कि यहूदी लोग अगर फ़्रांस में सुरक्षित नहीं हैं तो वह इस्राएल आ सकतें हैं और
तुरंत फ़्रांस ने ज्यू जनता को सुरक्षा प्रदान की|
नेतान्याहू के कल के भाषण में स्पष्टता
थी वह हमेशा होती है | उनके मुद्दों से चाहे कोई सहमत हो या असहमत, यह वैचारिक स्पष्टता उन्हें
प्रभावी बनाती है| अपने देशहित के लिए बात करने की, निर्णय लेने की उनकी शक्ती
उन्हें प्रभावी बनाती है|
सक्षम नेतृत्व कैसे बनता है?
प्रभावी भाषण नेता को
प्रभावी बनातें हैं, इसमें कोई शक नहीं | पर अगर भाषणों से नेता की योग्यता तय
होने लगी तो यह गलत होगा |
बहुत अच्छे संवाद बोलनेवाले
कलाकार जरूरी नहीं कि अच्छे राजनेता बन पाए| कलाकारों को, अभिनेताओं को कम आंकने का
मेरा यहाँ इरादा नहीं है, पर अगर कलाकार राजनीतिक नेतृत्व करना चाहें तो केवल
अच्छे संवाद बोलने से उनका काम नहीं चलेगा यह उन्हें तो पता होता है|
नेतृत्व अपने कर्तृत्व से
बनता है| कर्तृत्व मार्केटिंग से, जुमलों से, चुटकुलों से नहीं आता| वह निर्णयों से
आता है| सामंजस्य से आता है| विरोधियों के प्रति सम्मानजनक बर्ताव से आता है|
भारत में हम जब नेतृत्व की
चर्चा करतें हैं तो कैसे चर्चाएँ होती है यह मैंने जरा याद किया|
"उन्होंने पत्नी को गले से
लगाया या फिर उन्होंने देश के लिए पत्नी का और संसार का त्याग किया!"
क्या इन दोनों बातोंसे कोई
नेतृत्वगुण साबित होता है?
मैं यह नहीं कहती कि इन्ही
मुद्दों की चर्चा होती है पर आप देख सकतें हैं कि कितनी खूबसूरती से बड़े बड़े मुद्दे
छोटे बनाए जातें हैं और छोटी छोटी बातों की ऐसी चर्चा होती है जैसे वो सब अद्भुत हो|
नेताओं का फैशन सेन्स, हेयरस्टाइल,
उनकी सादगी का खुबसूरत मार्केटिंग, वे कैसें आम लोगों जैसे हैं, रेस्तरां में खाना
खातें हैं, संसद में सिर्फ २९ रूपए की थाली खातें हैं, अपने वस्तुओं की नीलामी
करके देश सेवा के लिए चंदा जुटातें हैं, कौनसा शेर बोलतें हैं!
नेताओं के मार्केटिंग के लिए
गाने, अबकी बार.... या पांच साल जैसी...टैगलाइन बनाई जाती है|
फिर मार्केटिंग के जरिए विशिष्ट
प्रतिमा बनाना, उनका unhappy होना, इनकी न्यूज बनती है!
अब सत्ताधारी नेता केवल नाराजही
होतें हैं? कोई कार्यवाही नहीं करतें? यह सवाल हमारे मनमें आता ही नहीं, और आएं तो
उससे पहले ही कोई और समाचार आ जाता हैं, जिसमें नेता की सादगी के कोई नए किस्से
होतें हैं!
जब राष्ट्र की समस्याओं को
सुलझाने की आवश्यकता हो तो चर्चा नेताओं के बच्चों के प्रति प्यार की होती है!
विदेश में रंगारंग
कार्यक्रमों को सफलता मानना, उसको स्थानीय चुनावों में सफलता के तौर पर मार्केट
करना....
और हम सबका....
इसी दुनिया में खोए रहना...
नेताओं के अहंकार को बढ़ाना!
धर्मनिरपेक्षता पर विश्वास
रखनेवाले कहतें हैं कि हिंदुत्व को खतरा मानतें हैं और हिन्दुत्ववादी यही बात
धर्मनिरपेक्षता के लिए कहतें हैं| और कुछ और लोग भ्रष्टाचार ही देश का सबसे बड़ा
मुद्दा है, इसलिए उसे समाप्त करना ही महत्त्वपूर्ण मानतें हैं|
पर मेरे मन में प्रश्न यह उठता है कि इन सब में से किसी विचारधारा को प्रत्यक्ष लाना भी हो तो क्या उतना सक्षम नेतृत्व हमारे पास है?
जनलोकपाल को, काले धन वापस
लाने के मुद्दे को क्रांति के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन आज उसकी चर्चा कम होती दिखाई देती
है|जनलोकपाल की जगह आज बिजली
पानी ने ले ली है और काले धन में तो ट्विस्ट आ गया है| जैसा मैंने सुना था कि आर्थिक
घोटालों के पैसे स्विस बैंक में जमा होतें हैं और वह काला धन होता है, वह हमारा –
जनता का पैसा है और उसे हमें वापस मिलना चाहिए|
आज चर्चा हो रही है,
टैक्स चोरी की! जी हां! काला धन मतलब केवल टैक्स चोरी! तो वो घोटालोंवाला काला धन उसका क्या हुआ?
यह विचार लिखने के पीछे
मुझे बेन्यामिन नेतान्याहू कितने महान नेता है, यह साबित करना नहीं है | मेरा
प्रश्न यह है कि कोई नेता हम सक्षम या अक्षम माने तो इसके पीछे कोई तथ्यात्मक, निर्णयात्मक
कारण क्यों नहीं होते?
आप खुद सोचें....
बिना कांग्रेस, आप, भाजप का
लेबल लगाए, मुझे और अपने आप को बिना कोई लेबल लगाए, आप खुद सोचें!
क्या फैशन अच्छे नेतृत्व की
परख होती है?
क्या स्कूटर चलाने से अच्छा
नेता देश को मिल सकता है?
क्या महंगे कपडे पहनने से
या सस्ते साधारण कपडे पहनने से नेता योग्य हो जाता है?
क्या अनशन, धरनों से या केवल घरानों से कोई अच्छा नेता हो जाता है?
कोई नेता अगर धार्मिक है,
श्रद्धालु है तो उनका नेतृत्व भी अच्छा हो गया?
क्या योगाभ्यास करनेसे
अच्छा नेता साबित हो गया?
क्या अच्छे मार्केटिंग से
अच्छा नेतृत्व मिलता है?
क्या विरोधियों का मजाक
उड़ाने से अपने प्रिय नेता की क्षमता साबित होती है?
क्या देश और दुनिया के लिए
एक अद्भुत भव्य दिव्य प्रतिमा बनानेवाले आम और खास नेता अपने ही पक्ष के अंदरूनी
कलह सुलझा सकतें हैं?
अच्छे सक्षम नेतृत्व की परख कैसे होती है?
यह प्रश्न नेताओं के लिए नहीं हैं हमारी अपनी नेतृत्व के प्रति कल्पनाओं के लिए हैं!