कृष्ण को समर्पित एक और काव्य,
हर कविता के पीछे कुछ न कुछ कहानी या प्रेरणा होती है। मैं
कुछ लहरें बनाने की कोशिश कर रही थी। थोड़ी सी बना दी और सोच रही थी आगे क्या करूं। मुझे किसी भी बंधन नियम से परे ऐसा कुछ बनाना था, तो, मैं रंगों से खेल रही थी। चित्र क्या बनें इसकी कोई मुझे चिंता नहीं थी, बस मनको आझाद करके कुछ पल खो जाना
था अपनी कल्पना में|
उन रंगों में मुझे फिरसे वही प्यार प्रतिबिंबित होने लगा,
वही कृष्ण और वही उसका पागल कर देनेवाला प्यार...
वही बिखरे रंग चित्र नहीं, कविता बन गए...कृष्ण के लिए एक
और प्रेमपुष्प,
देखो तो क्या छुपा है इन बिखरे रंगों में
प्यार की वही छटाएँ
जो तुमने सिखायी थी मुझे जीने के लिए
वो उमड़ती लहरें प्यार की
जो खुशियाँ लाती हैं दुनिया में
जरा याद तो करो वो यादें
वो हसती लडती लम्बी लम्बी बातें
समय भी रुक गया था
जिन्हें चुपके चुपके सुनने के लिए
वो भोली भाली बातें तुम्हारी और मेरी
और हमारे प्यार की
जिन्हें देखकर ही प्यार सीखा था लोगों ने
वो छटाएँ ऐसे उतर आयी हाथोंसे
फिर उसी प्यार के इजहार से
जैसे तुमने थामा हो हाथ मेरा
हे कृष्ण! फिरसे उसी प्यार सेचैतन्यपूजा में कृष्ण पर अन्य कविताएँ: