आज की कविता बीबीसी हिंदी रेडियो की अमिट यादों के
नाम...
अगर
आप रेडियो के और बीबीसी हिन्दी रेडियो के दीवाने हो तो आप यह जानते ही होंगे की बीबीसी हिंदी के कार्यक्रम
सुनते सुनते हर दिन एक अमिट याद बनती जाती
है और वह यादों का खजाना हमारे – हम श्रोताओं के ह्रदय में सदा बसता है |
३१ दिसम्बर २०१४ की संध्या पर बीबीसी हिंदी के
पुराने प्रस्तुतकर्ता कवी, अनुवादक आदरणीय श्री नीलाभ जी का कार्यक्रम विशेष
कार्यक्रम था, ‘यादें पुरानी - लोग पुराने’ | इस कार्यक्रम में उन्होंने बीबीसी
हिंदी के प्रसारणकर्ता ओमकारनाथ श्रीवास्तव, आले हसन, रत्नाकर भारतीय, अचला शर्मा,
हिमांशुकुमार भादुड़ी, गौरीशंकर जोशी इन सबकी यादें अपने मधुर और शांत रूहानी स्वर
में प्रस्तुत की थी | साथ में अविस्मरणीय कार्यक्रमों के क्लिप्स भी थे...भावावस्था
में ले जाने वाला यह कार्यक्रम था ऐसा मैं कहूँ तो अतिशयोक्ती नहीं होगी |
इस
कार्यक्रम में नीलाभ जी ने जो स्मृतियाँ फिरसे उजागर की थी, उस दौर को मैंने नहीं
देखा नहीं था | मैंने पहली ही बार नीलाभ
जी की आवाज और उनकी प्रस्तुती सुनी थी, लेकिन वह कार्यक्रम भौतिक भावों से परे
लेकर गया, ऐसा मंत्रमुग्ध कर देनेवाला जादू नीलाभ जी ने लाया था |
बीबीसी हिंदी के वर्षांत का कार्यक्रम आप यहाँ सुन सकतें हैं
उसी
शाम को ही यह कविता लिखी जानी थी, पर घर के बाहर वर्षांत की पार्टी हो रही थी और पार्टी
में जोरजोर से गाने वगैरह चल रहें थें तो कुछ लिख नहीं पाई...गद्य प्रतिक्रिया
लिखी थी बस | लेकिन वह दिव्य भाव जो शब्दों से परे होते हैं वह तो ह्रदय पर अमिट
छाप छोड़ देतें हैं....और फिर काव्य जन्म लेता है जब वह निराकार भाव शब्दों का रूप लेकर साकार बन जातें हैं...
बीबीसी
हिंदी की यादें और नीलाभ जी की प्रस्तुती
को समर्पित यह काव्य....
जब
अपनी ही साँसे
शोर
लगने लगी थी
भागती
दुनिया ठहर गयी थी
कुदरत
जब मौन हो गयी थी
चंचल
मन के अथाह सागर की
उमड़ती
लहरें स्वयम शांत हो गयी थी
अंतर्मन
के भी अंतर में
एक
ज्योत शांत लगी थी
वह
अवस्था कैसी थी
मैं
नि:शब्द निश्चल थी
वह
संध्या वर्षांत की कैसी थी
एक
आवाज धरती पर गूंज रही थी
शांत
मधुर वह स्पंदन
इस
दुनिया के तो नहीं थे
फिर
भी इस दुनिया के ही
तो
वह स्वर्णिम क्षण थे
वो
जादू था रेडियो का
वे
तार थे दिल के
जो
जोड़ें थें बीबीसी हिंदी ने
पीढियां
साक्षी है उस दीवानेपन की
जो
बीबीसीहिंदी ने दिया था
वह
कलाकार फिर से बोल उठे थे
जिन्होंने
बचपन से ही
हमारा
हाथ थामा था..
वो
यादें अमिट थी
सबके
ह्रदय पटल पर
धुल
भी तो जमी नहीं थी
न
धुंधली वह हुई थी
ताजा
ताजा फूलों की तरह
अभी
अभी श्रोताओं के दिल में थी
उन
सबको समेट कर
दिलों की गहराइयों से
दिल के ही अनादी माध्यम से
एक आवाज दी
एक
कवी ने, एक प्रसारक ने
बीबीसी
हिंदी के ही एक दीवाने ने
एक
कलाकार ने!
‘नीलाभ’
की वह दिव्य आभा
उस
संध्या में वह अनुपम आवाज
सुवर्ण
क्षण बिखेर रही थी
आँखे
भर आयी थी श्रोताओं की
दूर
दूर के देश विदेशों में बसे
करोड़ों
श्रोताओं के दिलों की एक ही आवाज
उस
दिन बन गयी थी ‘एक नीलाभ’
बनकर..........................................
एक
और अमिट याद बीबीसी हिंदी रेडियो की