पिछले आलेख गौहत्या -मानवता पे कलंक में हमने गौहत्या की चर्चा की, इसी विषय को जरा और विस्तार से देखें|
दिनांक ७ को गौमाता की सामूहिक हत्याओं की प्रतिमाएँ देखनेका पाप हो गया| एक विशाल मैदान हैं, रक्त की नदियाँ बह रही है और गौमाता की सानंद हत्या का उपक्रम निष्ठां से चल रहा है| नहीं लिखा जाता दु:ख! किसी और दृश्य में एक पर्व का हर्षोल्लास मनाने के लिए गौमाता के मस्तक काट के पंक्तिबद्ध सजाएं गएँ हैं| साथ में रक्त की नदियाँ पवित्रता (!) निर्माण करती हुई|
यह दृश्य देखके किसीकी भावनाओंको ठेंच नहीं पहुँचती| ठेंच पहुँचने तक का स्वातंत्र्य हमें स्वतंत्र भारत में छद्म-धर्मनिरपेक्ष (धर्मनिरपेक्ष यह शब्द यहाँ ठीक नहीं हैं – छद्म पंथनिरपेक्ष होना चाहिए|)
अल्पसंख्य समाज के बंधू ने मुझसे यह कहा की ईद मांस का नहीं मिठाई का पर्व है| थोडासा भ्रम किसीको भी हो सकता है| परन्तु सत्य क्या है, यह हम सब जानते हैं| इससे जुडी वार्ताएं शोध करके देखि जा सकती हैं| मैंने वह विडियो और वार्ताएं देखि है, पर यहाँ वह लिंक्स देना मुझे पीड़ादायक हो रहा है| कृपया आप Cow Slaughter In India इस से जुडी वार्ताएं देखके सत्य का निश्चय कर लीजियेगा|
इन में यह बात स्वीकारी गयी है की ईद पे गौहत्या होती है| यह मै पांथिक नेताओं के सन्दर्भ से कह रही हूँ जो ईद मनाते हैं| यहाँ किसी की भावनाओं को ठेंच पहुचे तो आप उन नेताओं से संपर्क कर सकतें हैं| कृपया मुझे अपराधी न माने| (मैंने यह बहुत चर्चाओं में देखा है की पंथनिरपेक्षता में कट्टर और अविवेकी बन चुके लोग, किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे को उठाने वाले को दोषी ठहराते हैं और अपराधी को न्यायोचित! इसलिए मुझे हर बात का विवेचन देना पड़ता हैं|)
अब रही बात भावनाओं को ठेंच पहुँचने की, तो बात बात पे भावनाएँ आहात होने लगी हम संवाद करें तो कैसे?
विद्वान् बंधुओं! आप एक बात पे मेरा मार्गदर्शन करें, क्या हम अपना दु:ख भी नहीं बोल सकते? अपना दु:ख व्यक्त करना हिंसा,हत्या, लूट, रक्त की नदियाँ बहाना, दूसरे के श्रद्धाओं को और श्रद्धास्थानों को ध्वस्त करके आनंदोत्सव करना इससे भी बड़ा अपराध है?
अब यह सब क्रूरता देखके एक प्रश्न आया, सबका रक्त एक है, सब मानव एक हैं तो यह भेद कौनसा की एक मानव को गौहत्या से और पशुहत्या से मरणान्तक पीड़ा होती है और किसी और को यह आनंददायक पवित्र उत्सव बन जाता है! ऐसा क्यों? यह जन्म से भेद है, या कर्म से या शिक्षा से? क्या कर्म सुधारने का स्वातंत्र्य हमें नहीं है?
पिछले दो तीन दिनों से दु:ख से मन उद्वेलित है| कुछ भी खाना हो तो बार बार वह रक्त की नदियाँ आँखों के सामने आती है, पर क्रोध नहीं, क्योंकि कथित धर्मनिरपेक्षता में कट्टर हो गए लोग, इस विषय पर बोलने से क्रोध से पागल हो जाते हैं|
बस दु:ख से एक प्रार्थना गौमाता से,
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैं क्षमा के योग्य तो नहीं, परन्तु मुझे क्षमा करना क्योंकि तुम मेरी माता हो| और तुम सदा ही क्षमाशील हो|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैंने इतनी शारीरिक और मानसिक शक्ति और धैर्य अर्जित नहीं किया की मैं तुम्हारी हत्या पूर्णत: रोक सकूँ, तुम्हारी हत्याओं के लिए संवैधानिक दंड निर्धारित कर सकूँ|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैंने अपना जीवन मनोरंजन में गवायाँ| तुझे वह काट रहें थे, और मुझे मेरे मनोरंजन की चिंता थी|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मै मुर्ख थी, जो पहले से तय खेलों के परिणाम में विजय के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती रही, परन्तु तुमसे कभी प्रार्थना नहीं की, तुझे बचाने का कोई उपाय नहीं किया|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैंने अनजाने में राष्ट्रद्रोहियों, संस्कृतिद्रोहियों की भावनाओं की चिंता की पर तेरी पीड़ा को जानने का प्रयत्न नहीं किया|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मेरा जीवन आज व्यर्थ लग रहा है, मैंने तुम्हारी हत्या का दृश्य देख लिया, सह भी लिया, और मुझे क्रोध भी नहीं आया|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| हे गौमात:! मुझे क्षमा करना|
गौहत्या के इस पाप का फल हमें अवश्य मिलेगा, इसका कारण है, कर्मसिद्धांत! इसी विषय का विवेचन करता हुआ आलेख और काव्य कृपया सुन ऐ जालीम अवश्य देखिएगा|
गौहत्या सच में एक बड़ा अपराध है. दिल को तीर की तरह भेद देने वाले दृश्य रहे होंगे वोह, जिनका आपने जिक्र किया है. केवल पढ़ के ही मुझे तो कम्पन महसूस हो रही है... मुझे यह लेख पढ़ के मेरे दादाजी की याद आ गयी. उन्हें गायो से बेहद प्रेम था. वे उनके हित और रक्षा के लिए सदेव कुछ न कुछ करने में जुटे रहते थे...
जवाब देंहटाएंआरती जी ! देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ| हाँ बहुत दुःख हुआ इसीलिए वह फोटो यहाँ दिए नहीं| आपके दादाजी को शत शत नमन| गौमाता की रक्षा ईश्वरीय और मानवता का कार्य है|
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