सुन ऐ जालिम

आज की प्रस्तुति और काव्य अत्याचार करनेवालोंको एक चेतावनी है| हिन्दू धर्म में कर्मसिद्धांत प्रतिपादित किया गया है| जो आज के विज्ञान के अनुसार ही है| कर्मसिद्धांत के अनुसार हमें हमारे हर छोटे बड़े कर्म का फल कर्म के अनुरूप अवश्य मिलता है| यह निसर्ग है| जो भी कर्म हम करतें हैं वह शक्ति का ही आविष्कार है, शक्ति - उर्जा बिना हमारा जीवन - जीवन ही नहीं रहेगा |  आइन्स्टाइन के उर्जा संरक्षण के नियमानुसार शक्ति निर्माण भी नहीं की जा सकती न नष्ट की  जा सकती है | वह तो केवल एक रूप से दुसरे रूप में परिवर्तित होती है | तो हमारे कर्म नष्ट कैसे होंगे? वह तो अच्छे या बुरे स्पंदनों के रूप में वातावरण में रहेंगे| न्यूटन  के तिसरे सिद्धांतानुसार प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है|

निसर्गानुसार भी यह सत्य है | सर्दी - गर्मी - बारिश चक्र चलता रहता है | क्या उसे कोई नष्ट कर सकता है? हम निसर्ग के बाहर नहीं हैं |

सत्ता और पैसे के मद में अत्याचारी अपने आप को शक्तिशाली समजने लगता है, ऐसे हर एक अत्याचारी के लिए, जालीम के लिए यह एक चेतावनी है| यह सिद्धांत पशुओं पे अत्याचार करनेवालों पे भी लागु है और मांसाहार करनेवालों पे भी| मुर्गियाँ जब काटने के लिए लेके जातें हैं, मुझे उन मुर्गियोंकी आँखें दिखती है, जिसमे यह पीड़ा होती है,''आज मैं असहाय हूँ, कमजोर हूँ, इसलिए मुझे मार रहें हैं, मेरी चीख कोई नहीं सुन रहा, ईश्वर ही न्याय करें|" आपको विश्वास नहीं होगा शायद, पर उन्हें सब समझमे आता है|सौंदर्य प्रसाधन बनते  हैं  उनमे भी आजकल पशुओंपे अत्याचार होतें हैं| इसके अलावा औषधि निर्माण में और संशोधन में भी  पशुओंपे अत्याचार होतें हैं, उनकी हत्याएं होती हैं| विज्ञान ने और संशोधन करने के तरीके खोजने चाहिए, ताकि  प्राणियों पे अत्याचार न हो सके | 


महिलाओं पे अत्याचार, भ्रूणहत्या कितने ही उदाहरण हैं, यह सब हमें ही वापस मिलने वाला है | 



कर्मसिद्धांत की यही अभिव्यक्ति इस काव्य में, 

तेरी भी दुनिया होगी तबाह 
ऐ जालीम 
शर्म कर जरा जुल्म करते हुए 
औरोंकी दुनिया तबाह करते हुए 
खुदा या भगवान तू माने या न माने 
यह कुदरत का इंसाफ होता है
जो तू देगा औरोंको
वही नसीब तेरा बन जाता है
मासूमों पे जुल्म करके
तू बच जायेगा तेरी ताकद से
ऐ नादाँ, ऐ मुरख!
ऐसा भ्रम मत पाल
आज जो तेरी ताकद है
सत्ता का जो तुझे नशा है
कल वही तेरी कमजोरी बनेगा
और
हथियार वही मासूमों का बनेगा
अभी भी वक्त है
सुधर जा ऐ जालीम
इंसान होके जी जरा
पाप थोड़े अपने धो जरा
कर्म तेरे बरसेंगे तुझपे
तो भलाई ही क्यों नहीं अपनाता?
रुलाके उस मासूम को
मारके जलाके उस जान के
आग तो तू तेरी ही जीवन में
लगा रहा है
एक बार सोच तो जरा
कौन तुझको बचायेगा
कर्म जब तेरा,
तेरे ही सामने दुश्मन
बनके आएगा
रोयेगा तो तू भी
उस मासूम की ही तरह
जलेगा तो तू भी अपनी ही
लगायी आग में एक दिन
सुन मेरी बात
सत्ता का नशा छोडके
सुन एक राज
प्यार का हथियार अपना ले
जुल्म ही ढाना है,
तो प्यार फैला दे
प्यार का जुल्म भी क्या जुल्म होता है
प्यार ही प्यार वापस मिलता है
सत्ता तो चलती है खुदा की
प्यार ही जिसका रूप है
उस सत्ता का नशा जरा कर ले
प्यार से प्यार को जीत ले
जुल्म करना छोड़ दे
प्यार ही प्यार भर ले
जीवन में तेरे और सबके 
प्यार ही प्यार भर ले  
प्यार ही प्यार भर ले 

इसी विषय पर एक मराठी संवाद - निसर्गचक्र आणि कर्मसिद्धांत  
    


टिप्पणियाँ

  1. sahi kaha aapne mohini ji.jo denge wahi milega......
    bahut acchi sandesh deti rachna

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  2. यह लेख मुझे एकदम सही समय पर मिला|
    मुझे बहुत अच्छा मार्गदर्शन मिला |

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  3. हर शब्द में एक गहराई, और येही मुझे हर बार यहाँ खीच लाती है! सुंदर विचार, दूसरों को दुख पहुचाने से वेदनाये हमे ही सहनी पड़ेगी ... बहुत सुन्दर विवरण...

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  4. चैतन्यपूजा में आपका स्वागत कनुजि| आपके समर्थन के लिए हार्दिक आभार |

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  5. आरतीजी! बहुत बहुत आभार|आपका प्रोत्साहन और लिखने की प्रेरणा देता है|

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  6. Bohot bohot bohot sundar abhivayakti aur tipaddi un jalimo pe!

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चैतन्यपूजा मे आपके सुंदर और पवित्र शब्दपुष्प.