कविता: राम राम है पति मेरो

अभी कुछ दिनों पहले मीरा’ चलचित्र देखा| संत मीराजी के बारे में कुछ भी पढ़ें, सुनें, प्रेम और भक्ति से आँखों में अश्रुपात होने लगता है|

मीराजी का साहस, मीराजीकी भक्ति, श्रीकृष्णप्रेम, सब अतुलनीय है | आक्रामकों के राज में अकेलि लड़की, भगवन के प्रेम में मगन हो, गाती नाचती पागल हो गयी थी| बस आज ऐसीही वेदना ह्रदयसे फूट पड़ी है| यह वेदना तो आनंद है| कृष्ण की कृपा है, सदगुरुदेव की कृपा है की ऐसी वेदना मेरे सौभाग्यसे अनुभव हो रही है|

अब चाहे दुनिया हमें पागल भी कहे, प्रेम तो छुपाए छुपता नहीं| कहतें हैं, विवाह बिना जीवन अधूरा है| पर क्या विवाह्से ही किसी को सही अर्थ में पूर्णता मिली है?

जीवन तो ईशप्रेम बिना अधूरा है| ईशप्रेम से हर क्षण जो पूर्णता का अनुभव होता है, वह और कैसे हो? संभवही नहीं| हम न तो ज्ञानी हैं, न योगी हैं, पर प्रेम तो कर ही सकते हैं|
और प्रेम में पागल ही होना है, तो श्रीराम से अच्छा और कौन मिलेगा? 


यही बात ह्रदय बोल उठा इस काव्य में,




राम नाम जपत जपत
प्राण यह छूट जाये
राम नाम जपत जपत
हर स्वास यह चालत जाये
राम नाम जीवन है मेरो
राम नाम है स्वास मेरो
राम राम जब है पति मेरो
भय सब छूट जाए
पिया संग जीवन बिताऊं
यही सपना मैं देखि जाये
पिया काहे तू सताए
लेन मोहे घर ना आए
तेरे बिरह में प्राण जलत है
तू तो मंद मंद हसत है
काहे सताए काहे सताए
ऐसे तू काहे मुस्कुराए
अखियनसे मेरे आसूं बहें
तू तो फिर भी मुस्कुराए
रो – रो मैं जान दूँ अब
तू ना मुझे ले जाए जो अब
कबहूँ मैं तोही बिसारा
स्वास तो हर तोही पुकारा
राम राम रे सुन ले पुकार
लेन मोहे आ एक बार
एक बार मिलन हो
फिर दुनिया यह छूट जाए
कुछ ना मांगूं मैं तुझसे
तेरा प्यार देजो मुझे
अब चाहे हमें कोई
पागल कहे
दुनिया की परवाह छोड़ी रहे
तू न आत अब जो लेन
प्राण तो ले अपने साथ
आस कछुक मोहे नाही
प्यास तेरे प्रेम की भी नाही
प्राण अब छुटना चाहे
काहे परीक्षा ऐसी तू ले
नाथ मोहे अब स्वीकारो
नाथ मोहे अब स्वीकारो
नाही तो प्राण ही स्वीकारो



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