काव्य कुछ नया सा -३

कल बीमार थी | अत: कल कुछ प्रस्तुत न कर सकी | आपकी क्षमा चाहती हूँ |

इससे नहीं कुछ और नया 
जीवन का आस्वाद नया 
प्रसाद यह गुरूजी का नया 
प्रकट हुआ चैतन्य नया
पूजा नयी, आविष्कार नया
सनातन यह माध्यम नया 
आशा नयी, विचार नया 
मेरा यह सहचर नया 
पत्थर नया, फूल नया 
भ्रमर वही उलझा नया 
आकाश नया, भूमि नयी 
मिलन क्षितिजसे रोज नया 
नित्य यह काव्य नया 
प्रेमका यह झरना नया 
साज नया, आवाज नया 
गानेका अंदाज नया 
राज पुराना आज नया 
सबको बताना काम नया
सही क्या है, गलत क्या है
उपजा यह विवेक नया

भाव:
 मिलन क्षितिज से रोज नया: जैसे धरती और अम्बर का मिलन क्षितिज पे सदा होता है, वैसेही जीवात्मा और परमात्मा का यह मिलन हरदिन, हरपल.
माध्यम नया : ब्लागिंग  का!
आगे है कुछ नया 
इस काव्य के पूर्व भाव : 
काव्य कुछ नया सा
काव्य कुछ नया सा - २



टिप्पणियाँ

  1. प्रमोदजी धन्यवाद!

    बस ऐसेही मन मे आता है! अछे और सच्चे विचारों के लिये ही मै अपने आपको मोहिनी मानती हू| मन की सुंदरता ही मुझे सुंदरता का रहस्य लगता है|

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  2. प्रमोदजी धन्यवाद!

    बस ऐसेही मन मे आता है! अछे और सच्चे विचारों के लिये ही मै अपने आपको मोहिनी मानती हू| मन की सुंदरता ही मुझे सुंदरता का रहस्य लगता है|

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चैतन्यपूजा मे आपके सुंदर और पवित्र शब्दपुष्प.