यश दो हे भगवान -२

तेरे बिना मै जी न सकूँ ||
तुझ बिन मै कुछ कर न सकूँ || २० ||

तू ही मुझको तडपाती है ||
दूर मुझको काहे  रखती है || २१ ||

गोविन्द क्यों तू ऐसे बोले ||
मेरी परीक्षा ऐसे लेते || २२ ||

कहाँ परीक्षा इस प्रेम में ||
जो है अनादी, है सदासे || २३ ||

प्रेम का ही रूप विरह ||
प्रेम बढाये जीवन में || २४ ||

इस काव्य का प्रथम भाव यहाँ देखें -चैतन्यपुजा: यश दो हे भगवान

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