तेरे बिना मै जी न सकूँ ||
तुझ बिन मै कुछ कर न सकूँ || २० ||
तू ही मुझको तडपाती है ||
दूर मुझको काहे रखती है || २१ ||
गोविन्द क्यों तू ऐसे बोले ||
मेरी परीक्षा ऐसे लेते || २२ ||
कहाँ परीक्षा इस प्रेम में ||
जो है अनादी, है सदासे || २३ ||
प्रेम का ही रूप विरह ||
प्रेम बढाये जीवन में || २४ ||
कहाँ परीक्षा इस प्रेम में ||
जो है अनादी, है सदासे || २३ ||
प्रेम का ही रूप विरह ||
प्रेम बढाये जीवन में || २४ ||
इस काव्य का प्रथम भाव यहाँ देखें -चैतन्यपुजा: यश दो हे भगवान
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
चैतन्यपूजा मे आपके सुंदर और पवित्र शब्दपुष्प.