रावण का महिमामंडन क्यों?

कल विजयादशमी है| विजयादशमी का त्यौहार धर्म की अधर्म पर विजय के रूप में मनाया जाता है| यह तो हम जानते ही हैं|  विजयादशमी पर रावण दहन होता है| रावण को अधर्म का प्रतीक माना गया है| पर पिछले कुछ वर्षों में रावण का महिमामंडन बढ़ गया है या बढाया गया है| यह महिमामंडन कितना उचित है और धार्मिक विद्वेष के लिए इस मुद्दे का कैसे उपयोग किया जाता है इसीसे जुड़े पहलुओं पर यह आलेख|


भारत में धार्मिक और जातिगत नफरत की आग लगाई जाए और वह सुलगती भी रहे इसलिए उसमें घी डालने के प्रयास अक्सर होते रहते हैं| बस एक प्रयास को कट्टर कहा जाता है और दुसरे को बुद्धिजीवी| रावण को इसी प्रयास के अंतर्गत हथियार के रूप  में प्रयोग किया जाने लगा है| रावण जैसे आदिवासी पर हिन्दुओं ने अन्याय किया ऐसा झूठा प्रचार बढ़ रहा है| वाल्मिकी रामायण और अन्य रामायण में रावण का उल्लेख विद्वान ब्राह्मण के रूप में ही आया है| रावण शिवभक्त भी था| उसने शिवतांडव स्तोत्र की भी रचना की है| लेकिन, हमारी संस्कृतिमें जो मनुष्य के कर्मों ही प्रधानता देती है, रावण को अधर्म का प्रतीक बताया गया| क्या यह उचित नहीं है? 

रावण ने सीताजी का अपहरण किया यह एक ही उसका निंदनीय कर्म नहीं था| अगर वाल्मिकी रामायण देखे  तो रावण वासनासे, वरदान के अहंकार से इतना अँधा हो गया था कि वह बच्चीयाँ, युवतियाँ, विवाहित स्त्रियाँ और अप्सराएँ, सबका अपहरण कर उनपर बलात्कार करता था| रावण ने अपने भाई कुबेर के पुत्र की प्रेमिका अप्सरा के साथ भी बलात्कार किया था| उस अप्सरा का खुद को बचाने के लिए आक्रोश पढने में भी बहुत पीड़ा होती है| कुबेर के पुत्र ने उसे शाप दिया| बाद में उसने अन्य अप्सरा के साथ बलात्कार किया, तब ब्रह्माजी ने उसे शाप दिया| उसके बाद उसने सीताजी का अपहरण किया था| ब्रह्माजी के शाप के कारण फिर वह बलात्कार कर ना सका लेकिन विवाह के लिए अत्याधिक कृरतासे सीताजी को डराता-धमकाता रहा| सीताजी की पीड़ा भी पढने में बहुत तकलीफ होती है| आजकल रावण या शूर्पणखा के अन्याय अत्याचार पूर्ण बर्ताव को प्रेम का नाम दिया जाता है| शूर्पणखा ने सीताजी की हत्या करने की कोशिश की थी, इसे किस तरह का प्रेम कहा जाए, यह मेरे जैसे अल्पमति की समझ से परे है| 

रावण तो ब्राह्मण था और हम हिन्दू जिन्हें अत्याचारी प्रचारित करना लोगों को बहुत पसंद है, हम लोग उस ब्राह्मण रावण को अधर्म का प्रतिक मानते हैं|  इस एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि भोलेभाले वनवासियों को किस तरह से धर्म के विरुद्ध भड़काने के लिए इस्तेमाल किया जाता होगा| ब्राह्मण खुद ही रावण से नफरत करते हैं, यह बात उन भोले लोगों तक कैसे पहुंचेगी? 

रामायण में शबरी, जटायु गृध्र, कबंध, अगस्त्य, निषाद, केवट, विभीषण, इन्द्रजीत की पत्नी, वाली की पत्नी तारा, सुग्रीव, हनुमान ऐसे कितने सारे भक्तों की कहानियां मिलती हैं| भगवान राम इन सबसे कितने प्रेमपूर्वक मिले यही भी मिलता है| इन सबके नाम पढ़कर क्या आपके मनमें उन सबकी जातियों का विचार आया? नहीं न! रामचरितमानस में नवधा भक्ति का वर्णन शबरी ने किया है| इन सबके बारे में जब भी हम पढ़ते हैं तो हमें भक्तियोग के लिए प्रेरणा मिलती है या उनकी जाती याद आती है? हिरण्यकशिपू जैसे दैत्य के पुत्र प्रह्लाद को हम क्या दैत्य के रूप में याद करते हैं? विभीषण तो रावण के भाई थे| भक्तों के आदर्श परमभक्तों में विभिषण की गणना होती है| विभिषण ब्राह्मण थें या असुर? वे तो महान भक्त थे|   

एक बार सोचिये, किसी ने बार बार जातियों की नफरत हमारे मन में नहीं डाली तो समाज कितना बदल सकता है| जातिभेद अभी भी है, अस्पृश्यता भी है, पर क्या उसे नष्ट करना हमारा कर्तव्य नहीं? किसी के बारे में नफरत दिल में रखना और उनको उसी दृष्टी से देखते रहना यह स्वस्थ समाज की निशानी नहीं|

सप्तशती में जिन असुरोंका वध हुआ, अब उनके महिमामंडन की  बातें सोची समझी नीति के साथ फैलती दिख रही है| किसी गरीब को और भोले व्यक्ति को नफरत के लिए बहकाना यह उसका इस्तेमाल करना ही है| हमारा कितना पतन हो रहा है, धार्मिक और सांस्कृतिक नफ़रत फ़ैलाने के लिए लोगों का इस्तेमाल किया जाता है| ऐसा नहीं कि उन्हें यह समझ में नहीं आता, पर किसका किस काम के लिए इस्तेमाल करना है, इस्तेमाल होने के बाद उसे कैसे दूर करना है यह तो भारत में बुद्धि की कला बन रही है| 

अत्याचारी असुर देवी माँ पर अनेकों शस्त्रास्त्रों से वार करते हैं, कोई उनको शादी के लिए जबरदस्ती करता है, नहीं आए तो बाल पकड़कर घसीटकर लाने को कहता है अगर यह सब आज लोगों को उचित लगता है, तो फिर इसे क्या कहे, यह मेरी समझ में नहीं आता| एक तरफ तो हमारे देश में महिलाओं के प्रति अत्याचार बढ़ रहे हैं और दूसरी तरफ अत्याचार की मानसिकता और अत्याचार करनेवालों का महिमामंडन हो रहा है|

असुर, राक्षस, दैत्य इन शब्दों में कर्मों की प्रधानता ही धार्मिक कथाओं में मिलती है| अगर जन्म से ही पूजा या निंदा होने जितनी संकुचित भारतीय संस्कृति होती तो रावण जैसे ब्राह्मण की तो हिन्दू पूजा करते| पुराणों को हमेशा मिथक प्रचारित करनेवाले, उनका मजाक उड़ानेवाले यह आज ठोस रूप से बता रहे हैं कि असुर आदिवासीयों के वंशज हैं|  

किसी भी जाती धर्म के लोग हो, मेरा निवेदन यह है कि कहीं अपना इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा, यह किसीसे नफरत करने से पहले सोचे|  (मुझे खुद जब जब ऐसा महसूस हुआ है, मैंने तुरंत ऐसे विचारों से अपने आप को अलग किया है|)

किस घटना को  क्या रंग देना  है,  किसे नकरात्मक रूपसे प्रस्तुत करना है, किसका महिमामंडन करना है यह तय करने के बाद उसके अनुसार सुविधाजनक तथ्य प्रचारित किए जाते हैं|  

हम जैसे सामान्य लोगों के लिए धर्म के विषय में सबसे विश्वसनीय रास्ता यही है  कि अब हम रामायण, महाभारत, पुराण, वेद, स्मृतियाँ इन सबका अध्ययन स्वयं करे, विद्वानों का मार्गदर्शन ले और इनपर चर्चा करे|  सही गलत का फैसला अपने विवेकसे करे|  किसी के भी नफरत भरे प्रचार से अपने अस्तित्व से और त्योहारों से, किसी के बहकावे में, आकर नफरत ना करे| 

सभी पाठकों को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ| 


Poems, Prayers and Photos blogged for the nine days of Navaratri:

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  2. चैतन्यपुजा: क्या हम वास्तव में देवी माँ की पूजा करते हैं?
  3. KrishnaMohini: Devi Maa Temple Darshan from Village Temples
  4. Narayankripa: Do we Really worship Devi Maa? 
  5. चैतन्यपुजा: चरणकमलों में गुरुदेव आपके 
  6. चैतन्यपूजा: तेरी शरण में हूँ माँ 
  7. चैतन्यपूजा: साधन में दृढ़ निष्ठा देना
  8. जीवनमुक्ति: रक्ष रक्ष मम साधननिष्ठा  
  9. विचारयज्ञ: साधन करण्या दृढ निष्ठा दे मज
  10. Narayankripa: My Life - Sadhana