व्यंग: नेताओं की फकीरी

आजके समय में राजनीति में एक सकारात्मक बदलाव नजर आ रहा है। फकीर लोग झोला लेकर जनसामान्यों के नेता बन रहे हैं और अपने बढ़ते कार्य से जनता के जीवन में फकीरी का तोहफा ला रहे हैं।

आपको शायद ये लगे कि एक दार्शनिक सन्त के लिए नेता बनना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। आखिर जिसे संसार का मोह छू नहीं सका उसे सत्ता क्या कर लेगी!

नेता होकर भी सन्त कैसे बने या संत होकर भी नेता कैसे बने ये विषय चिंतनीय जरूर लगेगा ..... अगर आप भी मेरी तरह टीवी पर हर रात आनेवाली बहस के नशे में जिंदगी का गम डुबोना पसन्द करते हो तो!


Text Image 'Netaaon Ki Fakiri' Chaitanyapuja ke vyang aalekh ke liye


दुनिया को रंगमंच मान लिया जाए तो हर तरह के मुखवटे फायदा नुकसान देखकर पहने जा सकते हैं।

जहां जवाबदेही की बात आती है वहां वैराग्य, मौन, और जनता के लिए सेहत के उपदेश काम आते हैं।

जहां बोलनेसे फायदा होनेवाला है, दिखावे से अपना फायदा होनेवाला है वहां तो भाई संसार ही काम आता है।

फिर किसीने आरोप लगाए तो सेवा करने का बहाना तो है ही।

राजनीति में हर रूप धरा जा सकता है। और कर्मयोगी संत के तो हजारों रूप होते हैं।

अच्छा अब आप पूछेंगे कि एक बार संत बन गए, वैराग्य और त्याग के भगवे वस्त्र पहन लिए तो फिर संसार से क्या काम? योग का क्षमा करें 'योगा' का ध्वज हाथ में ले लिया तो सत्ता का उपभोग क्यों चाहिए?

पर आजकल भगवा पहनकर ही संसार से ज्यादा काम निकलता है।

चाहे जितनी राजनीति कर लो, फिर नेताजी साधु के साधु ही। सत्ता की, जनता के साथ धोके की, वादाखिलाफी की और नफरत की  राजनीति कर लो, एक बार आप फ़क़ीर बन गए तो आपको कोई सवाल नहीं पूछ सकता ।

और वैसे भी नेता जो भी करते हैं वो सब देश की सेवा के लिए ही तो है ना? कोई संत अपने खुद के फायदे के लिए सत्ता में आ सकते हैं क्या?

यह सब तो देश के लिए है।

मेरा आपसे सवाल ये है कि अगर चुनाव में मुद्दे नहीं भड़काए गए, बयानबाजी नहीं हुई तो सत्ता कैसे मिलेगी, और सत्ता नहीं मिली तो देश की, जनता की सेवा कैसे होगी?

अगर लोगों की सेवा इस तरह से नहीं कर पाते तो आधुनिक संत जिएंगे कैसे? सच्चा सन्त सेवा के बिना जी ही नहीं सकता।

सन्तमनके नेता दहाड़ दहाड़ कर दुश्मन को डरा सकते हैं और कोमल हृदय के प्रेम से उसी दुश्मन को गले भी लगाते हैं। और गले लगते ही दूसरे दिन दुश्मन ने देश पर हमला बोल दिया तो क्या हुआ, सन्त तो क्षमाशील ही होते हैं।

संत या फ़क़ीर, त्यागी या योगी नेताओं के कार्य से जलना, उनकी आलोचना करना बहुत आसान है, लेकिन सत्ता का दुख भोगना, सत्ता के लिए रोज घूम घूम कर प्रचार करना, दिन रात नए नए जुमले और घंटों के साभिनय भाषण तैयार करना, विदेशों में केवल देश की सेवा के लिए घूमना ये सब एक वैराग्यवान सन्त के लिए कितना मुश्किल है, यह आप और हम जैसे संसारी, लोभी, कुटिल लोग कैसे समझ सकते हैं!!

क्षमा: इस व्यंग से सच्चे संतों का, सच्चे फकीरों का और सच्चे नेताओं का अपमान करने का कोई इरादा नहीं है। संतों के भक्तों की भी भावनाओं को ठेंस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं। तथापि किसीकी भावनाएं इस आलेख से आहत हुई हो तो हमें फ़क़ीर की तरह क्षमा करें।

ट्विटर पर जुड़ें: @Chaitanyapuja_ 

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