शब्दसाधना

२४ नवम्बर को हमारे हिंदी ब्लॉग चैतन्यपूजा ने छह वर्ष पूर्ण किए। हिंदी में ब्लॉगिंग के आरम्भ में मैंने एक प्रार्थना लिखी थी, 'यश दो हे भगवन'! हम कुछ लिखें और ज्यादा से ज्यादा लोग बड़े प्यार और आनंद से उसे पढ़े, बार बार पढ़ना चाहे तो यही, मेरे विचार से, एक लेखक या कवी के लिए यश हो सकता है।
ईश्वर की कृपा से मुझे सिर्फ पाठक ना मिलकर अच्छे दोस्त और सुहृद भी ब्लॉगिंग के कारण मिले। सुहृद अर्थात स्वार्थरहित हितैषी दोस्त, ऐसे मित्र जिंदगी में मिलना भगवान की कृपा का ही निदर्शक है। मुझे ब्लॉगिंग से इतना प्यार इसीलिए है। कुछ लिखने और प्रकाशित करने के बाद तुरंत अपने विचार पूरी दुनिया तक पहुंच सकते हैं। 


Image: Shabdasadhana



इन वर्षों में मुझे कुछ कारणों से (जो चाहकर भी लिखना मुश्किल है) मित्रों से मिलना संभव नहीं हो पाया। पर मैं ऑनलाइन जगत और ब्लॉगिंग के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करती हूँ क्योंकि हम इस लेखन के माध्यम से विचारों का आदानप्रदान कर सकते हैं, विश्व के विभिन्न स्थानों में रहने के बावजूद मैं जो लिखती हूँ वो शायद कभी प्रत्यक्ष मिलकर भी कह नहीं पाती, लेखन की शक्ति अलग ही है। मेरा विश्वास है कि हम सब जो ब्लॉगिंग से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, हमें प्रत्यक्ष मिलने के प्रसंग भी अवश्य मिलेंगे। 

ब्लॉग मेरे लिए आरम्भ से ही मंदिर की तरह हैं। साधना के अलावा लेखन भी शब्दसाधना ही है और ये सिर्फ उपमा के लिए नहीं लिख रही हूँ, माँ भगवती की कृपा और इच्छा के बिना मैं कुछ लिख ही नहीं सकती। मुझे लिखते समय भी यही लगता है कि जो भी इसे पढ़ें, उन्हें सुकून महसूस हो, ये शब्द हलकी हलकी लहरों की तरह मनमें, ब्लॉग पढ़ने के बाद भी, उमड़ते रहे और मनमें प्रसन्नता और चेहरेपर मुस्कान लाते रहें। ब्लॉगिंग से ही दुनिया की अच्छाई पर भी मेरा विश्वास फिरसे होने लगा दुनिया में कहीं अच्छे लोग भी होते हैं, अच्छे काम भी करते हैं ये बात ये ऑनलाइन दुनिया के माध्यम से ही देखने को मिली है। 

ब्लॉग पर आनेवाले पाठक सर्च इंजिन से भी आते हैं, जिनको मैं नहीं जानती। जिस व्यक्ति से कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं है, उसके शब्दों पर विश्वास करके आप सब ब्लॉग देखते हैं इस बात से मुझे एक - एक शब्द बहुत जिम्मेदारी से लिखने के लिए प्रेरणा मिलती है आप मेरे विचार, कविताएं पढते हैं इस बात से मुझे कितनी ख़ुशी होती है ये लिखने की आवश्यकता ही नहीं, वो ख़ुशी तो कविताओं में ही प्रतिबिंबित होती है

इस वर्ष सिर्फ एक बदलाव करना पड़ा मेरी आँखों की समस्या के बाद राजनैतिक विषयों पर लिखना मैंने रोक कर दिया है। मुझे उन पहलुओं पर लिखना अच्छा लगता था, जो ज्यादातर पढ़ने को नहीं मिलते या जिन पहलुओं को पढना मुझे अच्छा लगता। तथ्यों का अध्ययन और उनको आलेख में देना ये मुझे अब बहुत तनावपूर्ण लगता है, इसलिए उन विषयों से मजबूरन दूर होना पड़ा। पर अब मैं काव्य की ओर ज्यादा ध्यान देती हूँ। 

मैं जबसे धुले के चक्रव्यूह में फस गयी तबसे दुनिया से लगभग कट सी गयी थी। इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता मेरी विचारकक्षा में मुझे दिखता तो ब्लॉगिंग सम्मेलन या व्यावसायिक सम्मेलन इन सब में मुझे आप सबसे मिलने का अवसर भी मिलता। जिन्दगी में अपने विपरीत स्थितियों में ब्लॉगिंग करते रहना, अपने विचारों और मतों को बेझिझक प्रस्तुत करते रहना अपने आप में छोटासा ही सही पर एक यश है ऐसा मुझे लगता है।  इसलिए इन ६ वर्षों के छोटे छोटे प्रयास और १०० से ज्यादा हिंदी कविताएं मुझे बहुत महत्त्वपूर्ण लगते हैं। जहाँ 'ब्लॉगिंग' शब्द भी अभी तक अनजाना है, वहां से सिर्फ अपने पागलपन की उर्जासे, रोज नयी उम्मीद से, नयी कल्पनाओं से लिखने की कोशिश करना मुझे उपलब्धि लगती है। आज इतने विस्तारसे ये सब लिखने का कारण यही है कि शायद दोस्तों को लग सकता है कि मैं उनसे मिलना टालती हूँ मैंने चक्रव्यूह की उपमा का प्रयोग इसलिए किया क्योंकि कुछ समस्याओं का हल मेरी समझ से परे हैं

इस वर्ष मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ, ब्लॉगिंग के माध्यम से जो थोड़े से प्रयास मैं कर पा रही हूँ, उन्हें ऑनलाइन जगत तक ही सीमित ना रखकर वास्तविक जीवन में (अपने चक्रव्यूह से बाहर) आगे बढ़ाने की आझादी मेरे जीवन में आये। जिन दोस्तों से इतना अकृत्रिम स्नेह और प्रोत्साहन मिला है उनसे प्रत्यक्ष मिलने का और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का मौका भी मिले। आप सबसे प्रार्थना है कि ऐसे ही आगे भी प्रेरित करते रहें। मेरे शब्दों पर आपका स्नेह ऐसेही बना रहे 

चैतन्यपूजा में पूर्व के पड़ाव: 
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