जहाँ अपने दोस्त हो, वहाँ जैसे भी हालात हो कुछ परेशानी नहीं होती।और जहाँ अपने न हो वहाँ...
इसी शहरमें,
हम मिलते थे कभी,
बातें करते थे
आज केवल अकेलापन है...
इसी शहरमें,
बाजार की भीड़ में,
गाड़ियों के शोर में,
आज एक चुपचाप बेचैनसा अकेलापन है ...
इसी शहर में,
जहाँ हम कभी ‘साथ’ चले थे;
अनजानों की तेज रफ़्तार में
आज केवल अकेलापन है...
एक सूना सूना गहरा अकेलापन ...
इसी शहर में,
खुबसूरतसी हर शाम में,
शहर की चकाचौन्द में,
यादों की अनसुनी, अनकही चीख है
एक गहरे अकेलेपन के साथ...
इसी शहर में,
अजनबीयों की बातें
आज सिर्फ कोलाहल लगती है
इस शोर में 'हमारी' आवाज नहीं..
आज केवल अकेलापन है...
इसी शहर में,
जहाँ कड़ी धुप में हम कभी मिले थे,
खुबसूरत बाग़ बन गए हैं खिले हुए;
शायद ये भी इंतजार करते हैं हमारा
एक गहरे अकेलेपन के साथ...
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