कविता: क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?

आज हम सबकी जिन्दगी में अच्छे दिन आकर पूरा एक साल हो गया| अभी भी ऐसा लग रहा है मानो कल की बात हो, कल जश्न मनाना शुरू किया था और अभी भी जश्न ही मना रहे हैं...

इसी पर आज की कविता, हाँ! हाँ!! हम सबके अच्छे दिनों पर...


समझ में नहीं आ रहा यह शोर कहाँ से आ है रहा
हमारे जश्न के नशे में यह कमजोर सवाल कहाँ से आ है रहा
अच्छे दिन? अच्छे दिन? कहाँ हैं अच्छे दिन?

अरे यह कौन गुस्ताख बोल उठा?
"क्या तुम्हारे आए हैं अच्छे दिन?"

क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं?
हमारे जश्न में आज तू खलल डाल पा रहा है
आज तू गुस्ताख, एक आम इन्सान,
हमसे सवाल कर रहा है     
क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?
आज मौत भी आए तो एक नशे में
क्या ये अच्छे दिन नहीं है तेरे लिए?

मरना तो एक दिन हैं सभी को
जश्न मनाते मरते हैं अब सब
क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?

खुदखुशी तो तुझे एक दिन करनी ही थी
खुदखुशी तो पहले भी होती ही थी यार
पर जलसा मनाते मनाते मरना
यह नशा ही कुछ और है
क्या यह अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?

अरे महंगाई की मार से मरना ही था तुझे भाई
पर तेरे मरने का जश्न पहले कभी होता था ?
क्या यह नशा तूने पहले कभी देखा था?
क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?

अरे! जीकर भी क्या हासिल कर लेता तू
एक बेवकूफ आम मनुष्य
आज तेरे मरने पर बीमा मिलेगा
क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?

पढाई में जिन्दगी बर्बाद करके
जीते जी मर जाता तू
आज सिर्फ झूठी तारीफों के पैसे मिलतें हैं तुझे
क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?


नौकरी के लिए रो रहा है तू
तेरी रोने की आदत सुधरती ही नहीं  
नौकरी करके भी क्या कर लेता तू
आज तुझे सिर्फ गालियाँ देने के पैसे मिलतें हैं
वो भी ऑनलाइन गालियाँ ...
क्या ये तेरे लिए अच्छे दिन नहीं हैं?

अंग्रेजी, जर्मन हो या संस्कृत
या तेरी कोई मातृभाषा
भाषा पढ़कर क्या मिलनेवाला है तुझे?
अरे मेरे भाई! ट्रोलिंग का ‘स्किल’ सीख ले बस
एक स्मार्टफोन पर तेरी जिन्दगी बन जाएगी
क्या ये तेरे लिए अच्छे दिन नहीं हैं?

बलात्कार तो पहले भी होते थे
आज तेरे पास अपनी पीड़ा भुलाने के लिए
इतने सारे जश्न तो हैं
क्या ये अच्छे दिन नहीं हैं तेरे लिए?

क्या देखे थे ऐसे जलसे तूने कभी
तू तो ठहरा आम रोता इन्सान
तेरी गरीबी से तो दो वक्त की रोटी तेरे ‘नसीब’ नहीं थी
आज घर बैठे बैठे मुफ्त में मजे उड़ा रहा है तू
डंके की चोट पर जलसों के
देशों विदेशों में जो मनाए जा रहे हैं
क्या तेरे ‘नसीब’ में पहले कभी ऐसा जश्न था?  
क्या अब भी तेरे लिए अच्छे दिन नहीं आए?

सूखे से नहीं तो ओलों से
'मरना तो है ही तुझे'
फिर भी बच गए तो
कल गर्मी से ही सही
लेकिन मेरे भाई! मरना तो है ही तुझे
आज पते की एक बात मान
मेरे ‘मन की बात’ सुन

रोना छोड़ दे
चिल्लाना छोड़ दे
शिकायत करना छोड़ दे
जश्न मना मेरे भाई, जश्न मना

तेरे ‘फिर भी’ जिन्दा रहने का
आजसे ही जश्न मना
तेरी मौत का जश्न मना
तेरे कफ़न के लिए पैसे मिल गए
उसका जश्न मना    

आज से ही यह मन्त्र सीख ले
जश्न मना मेरे भाई! जश्न मना
अच्छे दिनों के नशे में सराबोर
जी ले या मर ले
लेकिन आज से मेरे भाई!