क्या हम वास्तव में महिला सशक्तिकरण चाहतें हैं या केवल व्यर्थ बहस?

महिला सशक्तिकरण क्या है, उसके पहलू क्या है और क्या महिलाओं की इच्छा या चॉइस के नाम पर महिलाओं के अस्तित्व और कर्तृत्व का अपमान हुआ है, इस विषय पर कुछ विचार..


महिला सशक्तिकरण पर एक वीडियो आजकल चर्चा में है| जिसमें महिला अपनी चॉइस ही सर्वोपरी मानती है| वीडियो के हिसाबसे इन चोइसों में क्षणिक प्रेम या कायमस्वरूपी वासना भी हो सकती है| और ऐसी काफी सारी बातें उसमें कही गई है, जो बहुत लोगों को आपत्तिजनक लग सकती है|

विवाद, चर्चा या केवल प्रोमोशन की नीतियां?


विवादास्पद विषय अक्सर इस तरह से उछाले जातें हैं जिससे कि बहस छिड़े, निरर्थक बहस छिड़े और विशिष्ट व्यक्तियों को प्रसिद्धी मिले| और कभी कभी तो सीधे अविवादास्पद विषयों को विवादस्पद ढंग से प्रस्तुत किया जाता है| इन बहसों से मिलनेवाली प्रसिद्धी और नाम भले नकारात्मक हो या अच्छा, लोग गुस्से से प्रतिक्रिया दे या चाहे जो हो, नाम मिलना महत्वपूर्ण होता है| शायद फ़िल्में चलने में इससे मदद मिलने की आशा हो, अगर लोग फिल्मसम्बन्धी हो| अगर फिल्म प्रमोशन की बात करें तो फिल्म अपयशी होने के बाद अगर विवाद खड़ा किया जाए तो उसकी फिल्म को मदद उतनी नहीं मिल सकती जितनी कि नयी फिल्म आने से पहले ही विवाद खड़ा करने से हो सकती है| आप प्रोमोशनल नीतियों की दृष्टिसे आसपास की घटनाएँ, मिडिया में चर्चित लोग और घटनाएँ इनकी तरफ ध्यान दे तो आपको ऐसी कितनी सारी बातें नजर आयेंगी जो व्यर्थ में आपका समय ले रही है|

मुझे इस तरह की प्रमोशनल नीतियां पसंद नहीं है और इसलिए मैं ऐसे विषयों की चर्चा करना और उनकी चर्चा होने की चाह को संतुष्ट करना यह टालती हूँ| पर फिर भी महिला सशक्तिकरण के नाम पर बनाए वीडियो के विषय पर लिखना मुझे बहुत आवश्यक लग रहा है| इसका कारण है, यह वाक्य, क्षणिक प्रेम या कायमस्वरूपी वासना यह महिलाकी चॉइस और महिला सशक्तिकरण की सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण कल्पना!

क्या महिला सशक्तिकरण सिर्फ चॉइस का प्रश्न है? महिला सशक्तिकरण समान अधिकारों का संघर्ष है|


यह वीडियो महिला सशक्तिकरण के नाम पर बनाया गया है, ऐसा बनानेवालों का कहना है| महिला सशक्तिकरण यह शब्द, यह विचार, यह कल्पना समझने में बिलकुल भी कठिन नहीं है| यह कल्पना ऐसी भी नहीं है कि इसके ऊपर कुछ विवाद हो और लोग अपनी अपनी अलग व्याख्याएँ बनाएँ| 

महिला को आर्थिक, वैचारिक स्वतंत्रता, निर्णय लेने का स्वातंत्र्य और अपनी इच्छा के अनुरूप जीने का स्वातंत्र्य होना चाहिये| उसे अपनी क्षमता, प्रतिभा और योगदान के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए| उसमें वह केवल स्त्री है, इसलिए भेदभाव नहीं होना चाहिए| उसे अपने काम के अवसर, पद और प्रतिष्ठा सब अपनी कार्यक्षमता के कारण मिलने चाहिए, उसका वह केवल स्त्री है इसलिए योग्य काम पाने के लिए या प्रमोशन पाने के लिए उसका शारीरिक, मानसिक, लैंगिक शोषण नहीं होना चाहिए| महिला को वह केवल महिला है इसलिए अपने सपनों का त्याग करने के लिए किसी का दबाव नहीं होना चाहिए| यह सब मुझे लगता है, महिला सशक्तिकरण है|

पर अपनी इच्छा के अनुरूप जीवन बिताने में चाहे वह महिला हो या पुरुष सबको इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि अपनी इच्छापुर्ती किसी और के दुःख का कारण न बने| अपनी इच्छापुर्ती के लिए कहीं हम किसीका शोषण तो नही कर रहें हैं? कहीं किसी के भावनाओं का शोषण तो नहीं हो रहा है? कहीं किसी की जिन्दगी बर्बाद तो नहीं हो रही है? घर हो या समाज हमें – स्त्री और पुरुष – दोनोंको,  सबके बारे में सोचना चाहिए तभी परस्पर सामंजस्य, सद्भाव और खुशहाली बनी रह सकती है|

फिर भी अगर हम कानून के दायरे में रह रहें हैं और किसी के जीवन को अपनी इच्छापुर्ती के लिए शारीरिक, भावनिक, और किसी भी तरह की हानी नहीं पहुंचा रहें हैं तो उसमें कुछ गलत नहीं हैं|

आज मैं आपसे बाटना चाहती हूँ कि मुझे किस तरह की महिलाऐं  सशक्त और स्वतन्त्र लगती हैं|

ऐसीही एक महिला सशक्तिकरण कहानी मैं आपको बाट रही हूँ..


एक दिन सब्जी खरीदते समय मैंने सब्जी बेचनेवाली महिला से कहा, इस साल सब्जियां बहुत महंगी हो रही है. मुझे इस बात की उत्सुकता थी कि जो खुद सब्जीयाँ बेचतें हैं उनके हिसाबसे महंगाई के क्या कारण हो सकतें हैं|


उस दिन ग्राहकों की भीड़ नहीं थी| उन महिलाने अपनी कहानी मुझे बताई| इस साल प्याज को अच्छा भाव मिल रहा है, इसलिए हम सब अपने अपने खेतों में प्याज ही उगा रहें हैं| मैंने भिन्डी उखाडकर प्याज लगा दिए| मेरा खेत यहीं पास के गाव में है|”  मैं उनकी बात सुन रही थी| उन्होंने आगे विस्तार से उनका आर्थिक गणित कैसे चलता है यह भी मुझे झटसे समझा दिया| उनकी शिक्षा क्या होगी, मुझे पता नहीं, मेरे मन में प्रश्न आया ही नहीं, लेकिन मुझे उन्होंने जो जानकारी समझाई वह बहुत वास्तव और गहरी थी| उनको बहुत ख़ुशी हुई कि मैंने उनकी समस्याएँ जानने का समझने का प्रयास किया| और उन्होंने मुफ्त में और सब्जी भी मेरे बैग में डाल दी| फिर उन्होंने कहा, मैं २० वर्षों से यहीं सब्जी बेचतीं हूँ| मेरे पति, बेटे, बहुए सब यहीं होतें हैं| आप सब्जी खरीदने यहीं आया करिए|


बातों ही बातों में उन्होंने ज्यादा सब्जी मुफ्त देकर ग्राहक से रिश्ता बना लिया, फिर से आने को – आते रहने को कहा (Call-to-action), आर्थिक गणित समझाकर ग्राहक का विश्वास अर्जित कर लिया| और यह सब करते हुए अपने मुनाफे का गणित भी चूकने नहीं दिया| इसे कहतें हैं महिला सशक्तिकरण! 
  
वे जब यह सब बोल रही थी, तब उनकी आँखों में चमक थी, उनका चेहरा खिल उठा था| वे मेरी माँ की उम्र की होगी| उनका वह सौन्दर्य ऐसा था जो एक कुशल प्रशासक के, कुशल व्यवसायी के चेहरे पर अपने अनुभव और  संघर्षों के कारण आता है, एक आत्मविश्वास भरा सौन्दर्य जिसका सम्मान हर कोई करना चाहे|  

उन्होंने जब ‘मेरे पति, बेटे बहु’....कहा, महिला सशक्तिकरण क्या है यह साबित कर दिया| वह मुझे कुटुंबप्रमुख लगी और अपने पति और परिवार के व्यवसाय में समान भागीदार! उनका व्यवसाय उनका छोटासा साम्राज्य है, जिसपर उनकी सत्ता है| उन्हें शायद पितृसत्तात्मक समाजव्यवस्था, फेमिनिस्म, महिलाओं के अधिकार, मेरी चॉइस जैसे शब्द पता न हो, पर उन्हें महिला के अधिकार, उनका कर्तृत्व क्या और कैसे होता है इसका अर्थ जरूर पता है| और सबसे बड़ी बात, उन्होंने मुझसे जो कृषि की आर्थिक चर्चा की, उसकी कोई स्क्रिप्ट किसी पुरुष ने उन्हें लिख कर नहीं दी थी| उन्होंने सब अपनी बुद्धि से ही बोला|

स्वतन्त्र और कर्तृत्ववान महिलाओं के आदर्श आपके आसपास ही है| उनसे प्रेरणा लीजिए|


ऐसी कितनी ही महिलाऐं हमारे आसपास होती है, जरा देखिए, अपनी छोटीसी दुकान चलानेवाली महिला, ब्यूटी पार्लर चलानेवाली, बचत गट बनाकर अपना छोटासा व्यवसाय खड़ा करनेवाली, लोकसंगीत गानेवाली, छोटी बड़ी नौकरी करने वाली, डाक्टर, इंजिनीयर , व्यवसायी, चिट्ठाकार, खेतों में मजदूरी करनेवाली  और गृहिणी  यह सब – क्या यह सब महिला सशक्तिकरण नहीं साबित कर रही हैं?

क्या यह उन महिलाओं के लिए प्रेरणा नहीं है, जो कहीं दबी कुचली है, जिन्हें अपने हक़ पता नहीं है? क्या उनकी जरूरतें केवल अमर्याद वासना कहके बताई जा सकती हैं?

महिलाओं में अपने रूप-रंग को लेकर न्यूनभाव दिखानेवाली मानसिकता:


मुझे नहीं लगता, उनकी समस्याएँ, उनका अपने हक़ के लिए संघर्ष, इस सबकी कल्पना गोरेपन की, दुबले बनानेवाले पदार्थों के सेवन की, या महिला सशक्तिकरण का सन्देश देनेवाली वीडियो में कपडे पहनते हुए दिखाने की कल्पना रखने लोग समझ पाएंगे|

फ़िल्में और विज्ञापन जिस उद्देशसे और जिस तरह से महिला का शरीर दिखातें हैं, आप चाहे उसे लिबरल, उनकी चॉइस, उनकी स्वतंत्रता - आझादी जो भी नाम दें, वह एक मानसिक गुलामी महिलाओं पर और उनके मन पर थोंप रहें हैं| आपको सिर्फ ऐसा दिखना है तो आपको स्वीकार किया जाएगा, नहीं तो नहीं| यह बात बार बार महिलाओं के मन-मस्तिष्क पर प्रभावी बनें इस तरह से दिखाई जाती है|

आपका रंग, आपका साइज़, आपके कपडे हर चीज में आकर्षण होना चाहिए..यह बात प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूपसे कही जाती है| भले ही यह लोग महिला सशक्तिकरण की बात करें, महिलाओं के दिमाग पर छोड़ी जाती है| ऐसे में वास्तव दुनिया में जो महिलाऐं सम्मान की पात्र हैं, जिनका कर्तृत्व है, जिन्होंने अपने योगदान से, अपने कार्य से समाज में बदलाव लाया है, अपने व्यवसाय से अपनी नोकरी से, यहाँ तक की अपने घर के व्यवस्थापन से अपने घर के लिए, समाज के लिए, देश की अर्थव्यवस्था के लिए जो छोटे बड़े प्रयास किये हैं वह दुर्लक्षित किए जातें हैं| महिला सशक्तिकरण वास्तव में क्या है? क्या अमर्याद वासना या क्षणिक प्रेम की चॉइसभर है?

किसे कौनसे कपडे पहनने है यह उनकी मर्जी है पर अगर कम कपडे पहनना, अपने शरीर का प्रदर्शन करना और विवाद खड़े करना यह ‘उनके अस्तित्व के लिए उनकी मजबूरी’ बन रहा हो तो यह महिला सशक्तिकरण नहीं है| यह नए तरीके की गुलामी है, जिसमें महिला का नियंत्रक उसे आझादी की व्याख्या बताता है, लिखकर देता है और उसीको वह आझादी मानकर जीती है, दुनिया से लडती है कि यह ‘मेरी’ मर्जी है| यह बहुत चिंता की बात है|

आप यह सोच रहें होंगे कि जो महिला कानूनन सज्ञान है उन्हें आप कैसे कह सकतें हैं कि उनका कोई नियंत्रक है? मेरा सिर्फ इतना कहना है कि महिला ने अपने विचारों का आत्मपरीक्षण करना चाहिए| अपने निर्णय हम वास्तव में अपनी मर्जी से ले रहें हैं या उनपर बाहरी प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष प्रभाव है, यह सोचने की आवश्यकता है| 

आपको शायद यह भी लगे, महिला की चॉइस का मुद्दा तो इस वीडियो के बहाने चर्चा में आया| मेरा इसपर प्रश्न है, हमें कोई अच्छा मुद्दा उठाने के लिए सामाजिक दृष्टी से गलत मार्ग के अनुमोदन की क्या आवश्यकता है? क्यों महिलाऐं अपने आप को इतना कमजोर मानती है कि अपनी इच्छाएँ समझने के लिए उन्हें किसी ऐसे वीडियो के जरूरत पड़े? मुझे लगता है कि महिलाओं की चॉइस का मुद्दा उन महिलाओं ने वास्तव में रखा है जो अपनी शर्तों पर जीती है, जिन्होंने संघर्ष से इस दुनिया में अपना स्थान बनाया है| सिंधुताई सपकाल जैसी महिलाओं ने महिलाओं की इच्छा और चॉइस का मुद्दा दुनिया को समझाया है ऐसा मुझे लगता है|

स्त्री हो या पुरुष अनंतकाल तक वासना यह मनुष्य का स्वभाव और स्वरूप नहीं है| मुझे नहीं लगता कि मनोविश्लेषक भी इसे सही मानेंगे|


आपकी महिला सशक्तिकरण की व्याख्या क्या है?

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