मुस्कान के आसूँ ...

जीवन में कुछ रिश्ते ऐसे होतें हैं, कुछ लोग ऐसे मिलते हैं, मानो कोई भ्रम हो, केवल एक भ्रमजाल ! पर इस भ्रम जाल में फसकर हम अपनी मुस्कान और भोलापन न खो बैठे इसलिए यह काव्यपंक्तियाँ

एक भोलिसी मुस्कान ने एक छलावे के लिए लिखी ...
छलावा तो छलावा है, कभी नहीं समझेगा पर मुस्कान को तो अपने आसूं लिखने थे,  बस् यह काव्य वही आसूं है,      मुस्कान के आसूँ ..





एक इच्छा थी मनमें  
जो बंधन बन गयी थी इस जीवन  में
इच्छा टूटी, सपना टुटा
बंधन सारा आज छुटा
साथ जो तुमने ऐसा छोड़ा
की बंधन भी बंधन से डरने लगा
यह तो मेरा ही भ्रम था
तुम्हारे साथ का आभास था
छोडोगे क्या तुम मुझको
बंधन बांधना तो तुमने सीखा ही न था
हां मेरा ह्रदय भी जख्मी है
मेरे भी प्राण तडपे हैं
पर एक अजीबसी शांति है मनमें
की झूटा वादा नहीं किया था मैंने
बहुत भुगती सजा मैंने
तुम्हारे झूटे साथ की पीड़ा मैंने
न तुम आये, न मुझे होश आया
पर जिंदगी ने हमारे झूटे ख्वाब का भ्रम तोडा
अब किसीसे कोई आस नहीं
किसी प्यास की कोई भ्रान्ति नहीं
अब उन्मुक्त पंछी की तरह
मै उडूंगी जहां दिलने कहा
अब किसी मोडपे तुम्हारा सामना न हो
मै तो भूल गयी पर तुम्हे
छलने का कोई बहाना न हो
मेरा जीवन तो गगन है
जमीन के बंधन तुम बांध लो
मैं तो सुखदुःख से परे हूँ
छलावे की नकली दुनिया तुम बटोर लो
तुम्हे सबकुछ मिलेगा शायद
पर वह मुस्कान नहीं
जो थी कभी तुम्हारी चाहत
मैं तो बहुत दूर चली गयी
आसुओं की दुनिया जो तुमने चुन ली
भोली मुस्कान से धोका कर बैठे
आसुओं से दिल लगा बैठे
अब कभी वह मुस्कान नहीं आयेगी
रोते रोते जिंदगी बोझ बन जायेगी
पर छलावा ही तुम्हारा जीवन था
भोलापन मेरा हर श्वास था
मैं भी जीवित हूँ, तुम भी जीवित,
अपनी अपनी जिंदगियां जीने की बस् एक कोशिश
बस् एक कोशिश, अपने सपनों को मारके
जिंदगी जीने की बस् एक कोशिश .......

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